गदराई लड़की के जवान बदन का चोदन- 5

(New Hindi Xxx Girl Kahani)

न्यू हिंदी Xxx गर्ल कहानी में मैं अपनी जूनियर के साथ खुला सेक्स कर चुका था और उससे शादी करना चाहता था. पर वह टाल रही थी. एक बार उसने मेरे साथ 2 दिन बिताये.

कहानी के पिछले भाग
प्रथम योनि भेदन का अनुभव
में आपने पढ़ा कि >हम दोनों अंतिम पड़ाव में थे, मेरे धक्कों में तेज़ी आ गई थी.
नीति ने एक तेज़ सिसकी ली, उसके बदन ने एक उछाल भरी और वह मुझे जकड़ते हुए बेजान ही गिर गई.
एक दो शॉट में मेरे लण्ड ने भी लावा उगल दिया.
चूत के अंदर से होती रस की फुहार और मेरे लावे वीर्य का संगम हो रहा था जो अकल्पनीय आनंद था.
रह गया सिर्फ उखड़ी हुई सांसों का शोर … जो धीरे धीरे कम होता गया.
पसीने में तरबतर दो नग्न जिस्म एक दूसरे को बांहों में समेटे एक दूसरे में सामने में लगे थे.
बांहों में भरे हुए हम दोनों नींद की आगोश में चले गए.< अब आगे न्यू हिंदी Xxx गर्ल कहानी: जिस्म का तापमान जब सामान्य हुआ तो कमरे की ठंडक ने हम दोनों को जगा दिया. नीति ने एक बार मेरे तरफ देखा और मेरी बाहों में सिमट गई. हम दोनों का ही प्रथम सम्भोग एक यादगार पल था. नीति ने उठने की कोशिश की पर शायद चुदाई का दर्द ने फिर से उसे लेटने को विवश कर दिया. मैं उठा, एक हैंड टावल को वाशरूम से गर्म पानी भिगो के लाया और उसके जिस्म को पौंछने लगा. उसकी जांघों, चूत के पास वीर्य और रज़ का चिपचिपा मिश्रण था, नीचे बिछी तौलिये में रक्त लगा था. खैर उसकी चूत की अच्छी से सफाई के बाद मैंने खुद को साफ किया और उसके बगल में लेट गया. नीति- हमने प्रोटेक्शन यूज़ नहीं किया, मेरे लिए गोली ले आना! पहली बार नीति ने मेरे से बात की. मैं- उसकी कोई जरूरत नहीं है, हम दोनों लखनऊ जाकर शादी कर लेंगे. नीति- नहीं, जरूरत है. माना कि मेरी मर्ज़ी से सब हुआ. पर मुझे अभी इस सब चक्कर में नहीं पड़ना. और पहले माँ से मैं बात करुँगी, उसके बाद तुम जब घर आना. हम लखनऊ में वैसे ही रहेंगे जैसे पहले रहते थे. वहां के ऑफिस स्टाफ को ऐसा वैसा कुछ भी नहीं लगना चाहिए. ये तुम वादा करो. और तुम वहां पहुंच कर मेरे साथ पुराने जैसा ही व्यव्हार करोगे. मेरी समझ से में कुछ आ नहीं रहा था कि नीति ऐसा क्यों बोल रही थी. पर उस वक़्त मैंने वादा कर लिया. अगले तीन दिन हम दोनों ने पति पत्नी की तरह बिताये. कभी उसका रूम तो कभी मेरा रूम ... हम दोनों ने बहुत सम्भोग किया. पर हर बार नीति ने कंडोम यूज़ किया, साथ ही साथ पिल्स भी लेती रही. सम्भोग में भी मेरी ही पहल होती थी और नीति साथ देती थी, अपनी तरफ नीति एक्टिव नहीं होती थी, न ही कुछ ज्यादा ट्राई करने देती. सिर्फ मिशनरी और डॉगी आसान में ही सभी चुदाई हुई. समर्पण तो था पर बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड वाला जोश न था. उसके व्यव्हार में कोई जोश उत्साह नहीं था जैसा एक नए प्रेमी प्रमिका के बीच होता है. लखनऊ आकर हमारा शारीरिक मिलन बंद हो गया क्योंकि मैंने वादा किया था. एक दो बार कोशिश भी की पर नीति ने साफ कहा- यहाँ लखनऊ में नहीं! मैंने शादी की बात की. तो बोली- माँ का मूड देख कर बात करती हूँ. इस बीच मैंने लखनऊ एक फ्लैट खरीदने की सोची हम दोनों के नाम में! तो उसने यह कह के रोक दिया- मेरा मकान मेरे और मेरी माँ के नाम में है. शादी के बाद तुम वहीं शिफ्ट हो जाना. और तुम उसी मकान में जो चेंज करने होंगे, तुम करवा लेना! मैं प्यार में अँधा मानता गया. कहते हैं ना कि कितना भी चतुर मर्द हो ... नारी के सामने उसका दिमाग काम करना बंद हो ही जाता है. वही मेरा भी हाल था. चूंकि मेरे ऑफिस की ऊपर की मंज़िल में ही मैं रहता था तो एक दो बार मैंने थोड़ी जबरदस्ती की जब वह मेरे रूम में किसी काम से आती. जैसे चूमना, चूचियां दबाना, चूत रगड़ना, बांहों में लेना आदि कर लेता था. जब कभी उसका मन होता तो लण्ड हिला के मेरा पानी भी निकाल देती थी. पर सम्भोग नहीं हुआ. फिर एक शुक्रवार उसने बोला- आज और कल रात मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी. मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि यह चमत्कार कैसे हुआ. खैर मैं तो उस वक़्त समझ ही नहीं पाया. तो मैं अगले दो दिन की तैयारी में ही जुट गया. बातों ही बातों में उसने बताया कि उसकी माँ तीन दिन के लिए अपनी बहन के घर गई है; रविवार की शाम को लौटेगी. मुझे लगा जिस्म की प्यास और चूत की खुजली नीति को भी परेशान कर रही होगी क्योंकि एक बार चुदाई कर ली तो चूत में को बार बार लण्ड मांगती है. तो मेरे जैसा ही हाल नीति का भी होगा. नीति शुक्रवार सुबह को अपना एक छोटा बैग ले कर आई और ऊपर मेरे कमरे में रख दिया. बैग रखते समय नीति को मैंने बांहों में ले लिया और उसके होंठों को चूमने लगा. हर दिन से अलग तब नीति ने भी साथ दिया. कुछ लम्हें ऐसे गुजरने के बाद हम दोनों ने साथ नाश्ता किया, फिर ऑफिस में आ गए. पूरा दिन नीति मेरे को देख के मुस्कुराती रही. मुझे कुछ भी अजीब सा नहीं लगा. पर पता नहीं क्यों ... यह बदलाव मुझे समझ में नहीं आ रहा था. मैं आलोक के आने के बाद क्लाइंट विजिट में आ गया और जब लौट रहा था तो आलोक को घर जाने को बोल दिया. तकरीबन 4 बजे मैं ऑफिस पंहुचा तो ऑफिस बंद था. तो मैं सीधा ऊपर रूम में चला गया. नीति किसी से फ़ोन में बात कर रही थी और 'समय पर पहुंच जाऊंगी' बस इतना सुना. मैंने नीति को पीछे से बांहों में भर कर उसकी गर्दन में किस कर लिया. नीति भी फ़ोन काट कर मेरे से लिपट गई. हम दोनों ने एक जबरदस्त स्मूच किया. मैं आगे बढ़ना चाहता था तो नीति बोली- अभी ऑफिस टाइम है, कोई भी नीचे आ सकता है या कॉल आ सकती है. वैसे भी मैं कहीं जा तो रही नहीं हूँ! पर मैं बेसब्र था और मैं नीति को इतना चोदना चाहता था कि वह मेरे से खुद को अलग न कर सके. शाम को हम अपने अपने काम निपटा के नीचे ऑफिस बंद किया, सारे दरवाज़े लॉक किये. और जब ऊपर पहुंचे तो नीति नहाने चली गई. मैं इस हसीन शाम की तैयारी करने लग गया. नीति सिर्फ तौलिया लपेट कर ही बाहर आई और मुझे फ्रेश होने का बोल कर रूम में घुस गई. जब तक मैं कुछ समझता, तब तक वह रूम में बंद हो गई. मैं भी जब नहा कर तौलिये में बाहर आया. नीति लाल रंग के सुर्ख अनारकली सूट में थी, गज़ब की खूबसूरत लग रही थी. मैं उसके पास गया और उसको बांहों में भरकर उसके लाल सुर्ख होंठों को चूमने लगा. नीति ने भी भरपूर साथ दिया. हम दोनों ही उस चुम्बन में खो गए. थोड़ी देर में जब अलग हुए तो नीति वाइन के दो गिलास भर के ले आई. वह मेरी गोदी में बैठ गै, हम एक दूसरे को वाइन पिलाने लगे. साथ साथ मैं उसको सहला भी रहा था, कभी चूची दबाता तो कभी उसके चूतड़, तो कभी जांघ! वाइन का नशा और मेरा सहलाना नीति को भी भा रहा था. धीरे धीरे हम दोनों की वासना बढ़ रही थी. मैं अभी भी तौलिये में था. नीति मेरा बदन सहला रही थी. गिलास ख़त्म होते ही मैंने उसको उठाया, बैडरूम में आ गया और उसके ऊपर आकर स्मूच करने लगा. नीति- बहुत बेकरार क्यों हो रहे हो? मैं कहीं नहीं जा रही हूँ. मैं- इसका कारण भी तुम हो, तुमको पता है कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ और हमेशा के लिए तुमको अपना बनाना चाहता हूँ. पर तुम आगे ही नहीं बढ़ रही हो! नीति- हमेशा की छोड़ो ... अभी तो अपना बना लो और अपनी बेकरारी मिटा लो। वासना का खुमार कुछ ऐसा ही होता है कि मर्द सब कुछ देख कर भी अन्धा हो जाता है. वही हाल मेरा भी था, मैं नीति पर छा गया. तौलिये का क्या हुआ, नहीं पता! पूरा नग्न मैं नीति के रस भरे होंठों को चूमने लगा. नीति भी पूरा साथ दे रही थी. ऐसा लगा कि उसके होंठों के रस को आज ही सारा पी जाऊं. चुम्बन के दौरान हम दोनों की सांसें भारी हो गई, चेहरा लाल हो गया. नीति के हाथ मेरे नग्न जिस्म को सहला रहे थे, मेरे चूतड़ों को मसल रहे थे. मेरा लण्ड सख्त होकर उसके कपड़ों के ऊपर से ही चूत द्वार पर दस्तक दे रहा था. मैंने नीति को थोड़ा उठाया और उसके कुर्ते को उतारने लगा. नीति के सहयोग से कुरता ऊपर जा रहा था, उसका उजला रेशम सा बदन उजागर होने लगा. अंदर लाल लेस वाली ब्रा दिखने लगी तो मेरा हाथ कुरता छोड़ उसकी मांसल चूचियों को दबाने लगा. अआआ.. ह्हह ... इईई ... श्श्शशश ... अआआ.. ह्हह ... अओय ... इईई ... श्श्शश ... अआआ.. ह्हह ... इईई ... श्श्शशश ... अआआ ... ” अब कुरता नीति ने खुद ही निकाला और मेरे से लिपट गई. उसकी चूची मेरे सीने में दब गई मेरे होंठ उसके कान की लौ को चूसने लगे. मेरी गर्म सांसें उसको उत्तेजित कर रही थी- आआ आऐई ईईईई ... आह्ह ऊऊ ... ऊह ऊओफ्ह! मैं कभी उसकी गर्दन, कभी चूची और गर्दन के बीच चूमता, चूसता, काटता! गर्दन को चूसते हुए जगह जगह लव बाईट बनते जा रहे थे. वह सिसकारने लगी- उई ईईई आह ईई ईईआ आआह हह म्मम ऊऊ ऊऊई माआआ आआह! नीति ने मेरे चूतड़ों पर हाथ जमा दिया और नोचने लगी, तो कभी नाख़ून गड़ा देती. हल्के दर्द से मैं बस आआह करके रह जाता. मैंने उसकी ब्रा का हुक खोल कर ब्रा निकाल दी. दो उन्नत मांसल, भरी चूचियां मेरे सामने थी. मैंने उसके निप्पल को जैसे ही चाटा, वह मजे से सिकारने लगी- अहह ऊईई ईईई अह्ह् स्सीई अई उई! धीरे धीरे मैं जीभ निप्पल पर फेरने लगा और धीरे धीरे मेरे होंठों ने पूरे निप्पल को गिरफ्त में ले लिया. नीति के हाथ मेरे मेरे बालों को सहलाने लगे और चूचियों में दबाने लगे. उसके होंठों से 'इईईई ... श्श्श्शशश ... अअ ... हाहा आआ' की कराह फ़ूट पड़ी. धीरे धीरे मैं ज्यादा से ज्यादा चूची मुँह में भर के चूसने लगा, मेरा हाथ दूसरी चूची को मसलने में लगा था. तब मैंने सलवार उतारी तो नीति ने भी गांड उठा के सहयोग किया. लाल पारदर्शी पैंटी पूरी तरह से चूत रस में डूबी थी. मैंने वैसे ही उसकी चूत को चाट लिया. कसैला सा स्वाद मेरे बदन को सिहरन दे गया. मैं उसकी गोरी भरी हुई जांघ को जीभ से चाटने लगा. कसमसा के उसने अपनी टांगें खोल दी और अपनी पैंटी खुद उतारने लगी. पैंटी उतरते ही उसकी केश रहित चिकनी गुलाबी चूत मेरे सामने थी. उसने मेरे बाल पकड़ के अपनी तरफ खींचा और अपने चूतड़ उछाल के चूत मेरे मुँह के पास कर दी. मैंने भी लपलपा के अपनी जीभ से उसकी चूत को चाट लिया. चूत की लाइन में नीचे से ऊपर तक जब जीभ फेरी तो नीति सिसक उठी- ओह हरी री री री! अहह ऊऊहह आहा हहा हहआ आ आ! नीति की चूत ने भरभरा के रस निकाल दिया और मैं भी पीता गया जीभ को अंदर तक डाल के! नीति का बदन कड़क होता गया, वह मुट्ठी में चादर लेकर सर तकिये में पटकने लगी. हम दोनों का उन्माद इतना ज्यादा था कि वह मेरे बाल नोचने लगी मेरे चूतड़ खींचने लगी. नीति ने 69 पोजीशन ली और मेरे मुँह पर अपनी चूत रख के बैठ गई, मेरा लण्ड गप से पूरा मुँह में ले लिया. वह इतनी आक्रामक हो जाएगी, ये मैंने सोचा नहीं था. उसके दांत लंड में लगने से मेरी चीख ही निकल गई जो उसकी चूत में ही दब के रह गई. जब मेरे चूतड़ हिले तो तो शायद वह समझी और मेरे लण्ड को आराम से चूसने लगी. मैं उसकी चूत चाटने लगा. चूत से बहता रस मैं पीता जा रहा था. नीति के चूतड़ कड़े होने लगे थे, उसकी जांघें मेरे चेहरे के इर्द गिर्द कसने लगी थी. मेरा लण्ड उसके मुँह के अंदर गले तक जा रहा था. वह जिस तरह से मेरे सुपारी पर जीभ फिरा के चूस रही थी, मैं यो क्या कोई भी मर्द स्खलित ओ जाए. हम दोनों के जिस्म काँपने लगे और नीति मेरे मुँह में चूत को दबा कर स्खलित हो गई. बेहोशी के आलम में वह मेरे लण्ड को मुँह में भरे भरे ही गिर गई. और मुख की गर्माहट से मेरे लण्ड ने उसके मुँह में वीर्य की बौछार कर दी जो उसके मुँह से बहता हुआ मेरी जांध को तर कर गया. होश में तो दोनों को ही न थे. अगले कुछ पल जब साँस सम्भली तो नीति मेरे बगल में आ गई और मेरे नग्न जिस्म से अपने नग्न जिस्म को चिपका लिया. काफी देर तक बस एक दूसरे को सम्भालते रहे, सहलाते रहे. दो जवान नग्न जिस्म जल्दी ही गर्म हो जाते हैं. वही हाल हम दोनों का था. चूत को अभी तक लण्ड नहीं मिला था. चूत में जाये बगैर लण्ड की अकड़ निकलती नहीं है, बार बार वह सर उठाएगा, ठुमकेगा! यही हाल मेरे लण्ड का था. चूत भी बेक़रार थी अपने अंदर लण्ड को लेने के लिए! नीति- हरी, अब बर्दाश्त नहीं होता, मेरे अंदर आ जाओ! मैं- मेरा भी यही हाल है. नीति- तो देर किस बात की है? मुझे रगड़ दो, अपनी बना लो! मैंने उसकी चूत में उंगली फेरी तो पूरी लिसलिसी सी चूत रस से सरोबार थी. उसकी जाँघों को फैला कर मैं बीच में आया, लण्ड को पकड़ के चूत के रस से चिकना करने लगा. नीति- आह्ह ... मत तड़पाओ! उसने खुद ही लण्ड पकड़ कर सही ठिकाने में लगा दिया. मेरा हल्का सा धक्का लगा. नीति- अह आअ ह्ह धीरे याआरर! थोड़ा लण्ड अंदर सरका चूत में तो नीति का बदन कड़ा हो गया. चूत का कसाव लण्ड को जकड़ने लगा. मैं दर्द तो ज्यादा देना नहीं चाहता था पर ऐसे तो मैं ही खलास हो जाता. तो मैंने अपने चूतड़ पीछे खींचेन और फिर जोर की जुम्बिश दी और सरसराता हुआ पूरा लण्ड चूत में समा गया. वह करह उठी- औऔ मा मा मा अअअ मर गई ई आह उफ शश शश उ उफ आई ईईईई औ औफ अह्ह्ह अह्ह्ह्ह आह हहह हईई ईई दर्द ज्यादा है. पर इसकी परवाह ना करते हुए मैं उसके बदन को सहलाता रहा और चूतड़ों को हल्की जुम्बिश देता रहा, हौले हौले लण्ड को अंदर बाहर करता रहा. हम दोनों को ही मालूम था कि यह दर्द कुछ ही पल का है क्योंकि हमने मुंबई से लौट के एक बार भी चुदाई नहीं की थी. दर्द खत्म हुआ तो नीति के बदन में थिरकन होने लगी. मेरे लण्ड के अंदर बाहर होने की लय के साथ उसकी गांड की लय भी साथ हो ली. बस फिर शुरू हुआ चुदाई का सफर! हर थाप में उठती नीति की गांड ... कभी लण्ड चूत के अंदर तो कभी चूत के बाहर! 'उऊम्म ह्हह ... उऊ ह्हहँ ... उऊँओ ह्हह ... उऊह्ह ... हुँअ!' करके वह अपनी कमर को उचका रही थी. मैंने एक जोर की सांस ली और सांस रोक कर दनादन उसकी चूत में पिस्टन की भांति लण्ड चलाने लगा. फच्च ... फच्च ... फ्च ... फ्च्च ... की आवाज़ के साथ मैंने तेज़ी से नीति की चूत में अपना लंड अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया. “ओह्ह्ह ... हरी ... बस बस्स्स ... हम्म्म” नीति ने अब कसमसाते हुए कहा. नीति इतनी देर से लंड के धक्के खा खा कर थक गई थी. वह मुँह से ‘उईई ... श्श्श्श ... आआह्ह ... ईईईई ... श्श्श्श ... आआह’ की जोरों से सिसकारियां निकालते हुए मेरे हर धक्के का जवाब नीचे से अपने कूल्हों को, गांड उचका उचका कर देने लगी थी. अचानक मेरे को लगा कि मेरा होने वाला है तो मैंने लण्ड निकाल लिया. लण्ड के निकलते ही नीति को होश सा आया, उसकी आँखें खुली. चूत के रस में चमकता लण्ड और उसका बहुत गहरा लाल सुपारा पूरी शान से सर उठाये खड़ा था. जब तक वह कुछ समझती, मैंने उसको पलट दिया. नीति की गोरी गांड बिस्तर की रगड़ से लाल हो गई थी. मैंने दोनों चूतड़ को फैलाया तो मेरे सामने गुलाबी गांड का छोटा से छेद था जो नीति की उत्तेज़ना से फड़फड़ा रहा था. मैंने झुक के एक बार दोनों चूतड़ को चूमा और कमर को पकड़ उसकी कमर को उठा सा लिया. घुटनों के बल बैठा मैं ... लण्ड के सामने गुलाबी चूत थी जिसके आस पास सफ़ेद झाग जमा था. एक जोर का थप्पड़ मैंने उसकी गांड में लगाया. "उईईई मा ईईई अह्ह्ह ... ह्ह ... उईई ... ईईई" उसकी चूत के पास लाकर अपने को थोड़ा सा एडजेस्ट किया और पूरा लण्ड चूत में डाल दिया. नीति की सिसकियाँ निकलने लगी- सस्स्स आहह ऊहह उउम्म ... प्लीज ... थोड़ा आराम से ... आअह उफ आह्ह माँ आई मार दिया! तुमने मुझे इतना मज़ा दिया ... उफ्फ़ और ज़ोर से प्लीज़ स्स्सीई! तुम आज अपनी सारी हदें पार कर जाओ. मुझे जितना मज़ा दे सकते हो, देते जाओ, तुम मुझमें समा जाओ ... आईईईई! मैंने नीति को पलटा और मिशनरी स्टाइल में लण्ड को चूत में उतार दिया. दोनों टांगों को ऐड़ी के पास से पकड़ कर जितना फैला सकता था, उतना फैला के 'फचा फच्च' लण्ड को चूत में अंदर बाहर करने लगा. नीति की चूत संकुचित होने लगी, बदन कड़ा होने लगा. तेज़ होती सांसें, पसीने में भीगता दोनों का जिस्म! एक चरम की किलकारी फिर ... इधर नीति की चूत ने अपने अंदर आये लण्ड पर रस की बौछार की, उधर चूत रस की फुआर से लण्ड ने भी रस की बौछार कर दी. चूत और लण्ड के रस का मिलन! बेजान होता जिस्म! चूत के अंदर थिरकता ... रुक रुक कर रस की बौछार करता लण्ड! चूत से बहता रस! नीति ने मेरे बेजान होते जिस्म को अपनी बांहों में समा लिया, समेट लिया. उसने अपने सम्भोग के आनंद में मुझे चूम लिया. थोड़ी देर के बाद दोनों ने शावर लिया और खाना खाया. एक राउंड चुदाई की जिसमें नीति ने मेरा लण्ड भी चूसा. फिर संडे की दोपहर तक हम सिर्फ अधोवस्त्र में ही रहे. कई राउंड चुदाई की, लण्ड चुसवाया, चूत चाटी. एक और अजीब बात यह हुई कि हमने कई राउंड चुदाई में एक बार भी प्रोटेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया. जबकि नीति डबल प्रोटेक्शन यूज़ करती थी. यह बात मेरे को बाद में समझ में आई. फिर रविवार शाम को वह चली गई. रात को उसका फ़ोन बंद आया तो मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया. सुबह वह जब काम में नहीं आई तो फ़ोन किया. तबी फिर फोन बंद आया. मैंने आलोक को भेजा उसका पता करने! तो जो कुछ पता चला, मैं शॉकेड हो गया. आलोक- सर, नीति ने अपना मकान बेच दिया है और वे लोग कहाँ गए, पता नहीं. शायद वे कोलकाता गए है और वहीं उसकी शादी है शायद! मैं तो कुछ समझ ही नहीं पाया. मैं अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था. मैं आलोक को रुकने को बोल कर उसके घर गया तो पता चला कि उसकी माँ तो कई दिन पहले ही कोलकाता चली गई थी. नीति ने शुक्रवार को मकान की चाभी नए मालिक को दे दी थी. अब मुझे उसकी सारी बातें रिकॉल करने लगी. शायद उसको मैं कभी पसंद ही नहीं था. दूसरा मैं उसको प्यार करता हूँ तो मेरे से उसको रिस्क कम था. उसने अपनी हवस मिटाने के लिए मेरा भरपूर इस्तेमाल किया मेरे इमोशन का इस्तेमाल किया. मैं ठगा सा बेवक़ूफ़ सा बना बैठा था. आलोक की बीवी नताशा भी मेरे नीति के प्रति प्रेम को समझती थी. उसने भी मुझे सान्त्वना देने की कोशिश की. कहते हैं कि समय सब घाव भर देता है. पर मेरा घाव कुछ ज्यादा गहरा था. मेरा दिल उचट सा गया इन सब से! तो मैं आलोक को ब्रांच हेड बनाकर मुंबई वापस आ गया. मुझे नहीं पता कि कभी मेरे जीवन में नीति दोबारा आएगी भी या नहीं! एक बात का मुझे विश्वास था कि उन दो दिनों की चुदाई में हम दोनों ने चुदाई में प्रोटेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया था तो नीति गर्भवती जरूर होगी. इसलिए मैंने उसका कंपनी बैंक अकॉउंट चालू रखा क्योंकि वही एक जरिया था मुझे उसके बारे में पता करने का! और भी तरीके थे जिनको मैंने आजमाया भी! पर कुछ पता नहीं चला. और पता भी चला कि उसने उस अकाउंट को बैंगलोर में ऑपरेट किया जिससे यह तो समझ में आ गया कि वह इसी दुनिया में है. पर उसका पता ज्यादा नहीं चल पाया. देखते हैं उससे कब पुनः मुलाकात होती है. शायद मैं उससे पूछ सकूं कि मेरे साथ विश्वासघात क्यों किया? और शायद आपको कुछ नया जानने को मिल जाए! तब तक के लिए आप सभी का धन्यवाद कहानी पढ़ने के लिए! मेरे प्रिय पाठको, यह थी हरी की दास्तान! न्यू हिंदी Xxx गर्ल कहानी आपको कैसी लगी? मुझे मेल और कमेंट्स में जरूर बताएं. अगर आपके पास भी ऐसी कोई सामान्य से हट कर कोई घटना है या फिर कोई समस्या है या कोई सेक्स से सम्बंधित जिज्ञासा है या फिर कोई सवाल है तो आप मुझे ईमेल कर सकते हैं. 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