मेरा गुप्त जीवन-107

(Mera Gupt Jeewan-107 Rewa Sanwari Ki Chut Chudai)

कपड़े पहन कर हम वहाँ से निकले लेकिन मैंने जाने से पहले चौकीदार को 10 रूपए इनाम में दिये।
घर पहुँचे तो देखा सब सो रहे है और मैं भी अपने कमरे में जा कर सो गया।
शाम को उठा तो कम्मो चाय ले कर आ गई और बोली- छोटे मालिक आज का क्या प्रोग्राम है?
मैं बोला- आपका क्या प्रोग्राम है? मैं तो वही करूँगा जो आप लोग करने को कहोगे।

कम्मो बोली- सब लड़कियों और भाभियों का तो काम हो चुका है अब रह गई सिर्फ वो दो लड़कियाँ। अभी तक तो उनकी ओर से कोई इच्छा नहीं हाज़िर हुई तो मैं सोचती हूँ उनको जाने दो! वैसे मैंने रिया को कहा है कि उनसे पूछे उनकी क्या इच्छा है। अगर उनकी कोई इच्छा नहीं हुई तो आज का दिन आप को छुट्टी दे देते है क्यों कैसी रहेगी यह बात?
मैं बोला- ठीक है, मैं भी आज अपना लंड को हाथ में पकड़ कर सोऊँगा, कुछ इस छोटे भाई को भी आराम मिल जाएगा।

अगले दिन दशहरा था तो घर के सब लोग इस पर्व को देखने की तैयारी में लगे हुए थे। एक दो बार निम्मो आई मेरे कमरे में चाय वाय देने और हर बार वो मेरी और मुस्करा कर चली जाती थी।
थोड़ी देर बाद आई यह कहने के लिए कि ‘खाना तैयार है’ तो मैं उठा और झट से निम्मो को अपनी बाहों में ले लिया और कस कर उसको जफ्फी मारी।
वो कसमसाती रही लेकिन मैंने भी नहीं छोड़ा और एक दो चुम्मियाँ उसके गीले होटों पर जड़ दी और उसके गोल मोटे स्तनों को भी दबाता रहा और उसके गालों को चूमता रहा।
वो बोलती रही- छोड़ दो छोटे मालिक, कोई देख लेगा… जाने दो मुझको!
लेकिन मैंने भी नहीं छोड़ा और अच्छी तरह से उसको हाथ वाथ लगा कर ही छोड़ा।

शाम को हम सब कार में बैठ कर बारी बारी रामलीला मैदान में जाने के लिए तैयार हो गए और मेहमानों को भेज कर ही मैं और कम्मो कार में बैठे लेकिन अभी कार चली भी ना थी कि वो दोनों लड़कियाँ भागती हुई आई और कार के बाहर खड़ी होकर इंतज़ार करने लगी कि कैसे बैठेंगी कार में!
मैं कार में से निकला और उनको पिछली सीट पर बिठा दिया जहाँ कम्मो और निम्मो भी बैठी थी, उन दोनों के बैठ जाने के बाद अब कोई जगह नहीं बची थी तो मैंने कहा- आप लोग चलो, मैं पैदल आता हूँ!

लेकिन कम्मो भी घाघ थी, वो बोली- नहीं छोटे मालिक, आप आ जाओ, इनमें से एक लड़की मेरी गोद में बैठ जायेगी, आप आ जाओ! आपके लिए जगह हो जायेगी।
मैं भी ज़बरदस्ती बैठ गया और मैंने ध्यान से देखा तो मैं उस गोरी लड़की के साथ बैठा था जिसका नाम रेवा था।
बैठते ही मेरी कोहनी उसके गोल मुम्मों में जाकर टिक गई और मैं बिल्कुल बेखबर हुआ उसके साथ जांघों के साथ जांघों को जोड़ कर बैठा हुआ था और ऐसा बेखबर बैठा था जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं।
रेवा का भी हाथ एक दो बार मेरे लौड़े के ऊपर रखा हुआ लगा था लेकिन मैंने भी उसकी तरफ देखा तक नहीं।

जब दशहरा के मैदान पर पहुँचे तो कम्मो ने दोनों लड़कियों के हाथ पकड़े और मुझसे कहा कि आप सब पीछे पीछे आओ!
मैदान एकदम खचाखच भरा हुआ था तो कम्मो ने मुझको अपने आगे कर लिया और मैं दोनों लड़कियों के एकदम पीछे हो गया और चलते चलते मेरे हाथ कभी रेवा के चूतड़ों पर लग रहे थे या फिर सांवरी को लग रहे थे और कम्मो कोशिश करती रही कि मैं उन दोनों लड़कियों के पीछे ही रहूँ और उस खींचा तानी में अक्सर मेरे लौड़ा रेवा की गांड में फिट हो जाता था और उसको सख्त लौड़ा बार बार टच करता रहा और वो भी कभी हाथ लगा कर लौड़े को छू रही थी और सांवरी तो कई बार लौड़े को छू चुकी थी।

एक जगह हम भीड़ के रेले में फंस गए और अब मेरा पूरा खड़ा लौड़ा रेवा को छू रहा था, उसके गोल चूतड़ों को बार बार छेड़ रहा था।
उधर सांवरी अब कोशिश करके मेरे पीछे हो गई और उसके मुम्मे मुझको मेरी पीठ पर रगड़ रहे थे और उसकी उभरी हुई चूत भी मुझ को बार बार मेरे चूतड़ों पर लग रही थी।

अब मैं अपने हाथ भी रेवा के चूतड़ों पर रखने लगा ताकि किसी और मर्द का हाथ वहाँ ना लग जाए और यह हकीकत रेवा से छुपी नहीं थी, वो भी अपने चूतड़ों को आगे पीछे करके मेरे और ज़्यादा नज़दीक आने की कोशिश कर रही थी।
अब मैं एक किस्म से दोनों लड़कियों के बीच में था यानि आगे रेवा थी और पीछे सांवरी थी और दोनों ही मुझ को दबा रही थी।

यह सारा तमाशा कम्मो देख रही थी और वो मुस्करा भी रही थी क्यूंकि उसको लग रहा था कि ये दोनों अनछुई कलियाँ भी शायद मेरे हरम में दाखिल होने के लिए काफी तैयार लग रही थी।

कम्मो की वजह से हम सब सही सलामत आगे विशिष्ट मेहमानों के लिए लगी कुर्सियों पर बैठने के लिए पहुँच गए और जो कुर्सियाँ खाली पड़ी थी उनमें से एक में रेवा बैठ गई और दूसरी पर मैं, उसके साथ वाली पर सांवरी बैठ गई और कम्मो, निम्मो और पर्बती हमारे पीछे वाली सीटों पर बैठ गई।
जब सब बैठ गई तो मैंने अपने चारों तरफ देखा तो सबसे आगे सीटों पर मम्मी पापा और विशिष्ट अतिथि उनके साथ बैठे थे और बाकी की सीटों पर कई स्त्रियाँ और कन्यायें बैठी थी, जिनको मैं नहीं जानता था।

अब मैंने अपनी बाईं तरफ देखा तो रेवा और मेरी दायें तरफ सांवरी बैठी थी और हम सबकी टांगें एक दूसरे को छू रही थी और मैंने अपनी टांगों का दबाव दोनों अनछुई कलियों की टांगों पर बनाये रखा, वे भी इस दबाव का जवाब हल्के से दबाव से दे रही थी।
मैंने पीछे मुड़ कर देखा और जब मेरी नज़र कम्मो से मिली तो मैंने एक हल्की सी आँख उसको मारी।

थोड़ी देर बाद रामलीला के राम जी रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण को जलाने के लिए आगे बड़े और अपने जलते हुए तीर उन तीनों पर बारी बारी से चला दिए।
इन तीनों के बुतों पर तीर लगते ही वो एकदम से धू धू कर जल उठे और उनमें भरे हुए पटाखे बहुत तीव्र आवाज़ से फट पड़े और उनके फटने की ध्वनि से लड़कियाँ औरतें और बच्चे घबरा से गए और उठने लगे अपनी सीटों से लेकिन मैंने रेवा और सांवरी को बिठाए रखा और ऐसा करते हुए मैंने उन दोनों को अपने और भी निकट बिठा लिया और दोनों की कमर में अपने हाथ डाल कर अपने से चिपटाए रखा।
दोनों ने मेरी तरफ बड़ी प्यार भरी नज़रों से देखा।

जब रावण जल गया तो हम सब खड़े हो गए लेकिन मैंने उन सबको रुके रहने के लिए कहा ताकि भीड़ निकल जाने दें और फिर चले।
इस सारे समय मैंने दोनों लड़कियों को कमर से पकड़ रखा था और अपने से चिपकाए रखा था और अँधेरा भी बढ़ गया था सो किसी ने कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।

फिर जब भीड़ छंट गई तो हम भी कार की तरफ चल दिए लेकिन कार तो मम्मी और पापा को लेकर चली गई, हम सब वहीं खड़े कार का इंतज़ार करते रहे और जब कार वापस आई तो मैंने सबसे पहले दोनों भाभियों को और बाकी लड़कियों को बिठा दिया।
रेवा और सांवरी को भी कहा कि वो चली जायें लेकिन दोनों ने कहा ‘वो मेरे साथ जाएंगी…’
हम वापसी में भी एक दूसरे को हाथ लगाते हुए घर पहुँचे।

वो रात आये हुए सब मेहमानों की आखिरी रात थी हमारी हवेली में तो बहुत ही अच्छा और उम्दा खाना बनाया गया था जिसको खाकर सबने बहुत तारीफ की और पर्बती को शाबाशी दी गई।
कम्मो को मैंने मेले में हुई बातों से वाकिफ करवा दिया था और उसका भी मानना था यह दोनों लड़कियाँ भी तैयार हो जाएँगी।
मैंने कम्मो को उनसे पूछने को कहा।

खाने के बाद हम सब बच्चे और दोनों भाभी जान बैठक में बैठे हुए गप्पें मार रहे थे। मैं रेवा और सांवरी के बीच बैठा था और बाकी सब सामने वाले सोफे पर बैठी थी और अक्सर मेरा हाथ उनके बाज़ू से टकरा जाता था और एक दो बार रेवा का हाथ मेरी गोद में आ लगा लेकिन मैंने कोई ध्यान नहीं दिया।

जब हम सब उठने वाले थे तो बड़ी भाभी बोली- सोमू भैया, जाने से पहले एक छोटी सी मुलाकात हो जाए तुम्हारे कमरे में क्यों?
मैंने कम्मो की तरफ देखा और उसने बात को शुरू किया- भाभी जी, अब छोटे मालिक के कमरे में जाना ठीक नहीं होगा। मम्मी पापा भी अभी जाग रहे हैं तो आप अपने कमरे में सब लेट जाओ, मैं वहाँ आकर बता दूँगी कि क्या कैसे करें? ठीक है ना?
मैं अब अपने कमरे में आ गया और और अपना कुरता पजामा पहन कर इंतज़ार करने लगा।

इंतज़ार करते हुए थोड़ी देर ही हुई थी कि कम्मो आ गई और मुस्कराते हुए बोली- वो दोनों भी आपके पास आने के लिए राज़ी हो गई हैं। वैसे उनकी मर्ज़ी बहुत थी लेकिन वो बन रही थीं कि कोई उनसे ख़ास तौर से कहे तो वो जाएँ।
मैंने कम्मो से पूछा- क्या तुमने अपनी तरफ से पूछा या फिर उन दोनों ने खुद ही पहल की?

कम्मो फिर मुस्कराई और बोली- वो ऐसा है छोटे मालिक, मुझको इतना तो ख्याल है कि हम नहीं चाहते कि उनसे ज़बरदस्ती की जाए। मैंने उनसे पूछा कि वो कब वापस जा रही हैं तो वो दोनों बोली कि उनको लेने आने वाले भाई का फ़ोन आया था कि वो परसों आएंगे तो वे दिन और ठहरेंगी। मैंने उनसे कह दिया कोई बात नहीं जब तक वो चाहे वो ठहर सकती हैं।

मैं बोला- फिर उन्होंने क्या कहा?
कम्मो बोली- उनको आप से अकेले में मिलने की बहुत इच्छा है। मैंने कहा कि वो आज रात आ सकती हैं मिलने के लिए अगर उनकी मर्ज़ी है तो!
दोनों ने कहा कि वो आएँगी आज रात ज़रूर।
मैंने कहा- क्या तुमने उनको बता दिया कि मिलने पर क्या संभव है?
कम्मो बोली- साफ़ साफ़ तो नहीं बताया लेकिन इतना ज़रूर पूछा कि क्या वो कुंवारी हैं? दोनों ने कहा कि ‘नहीं उनकी तो सील टूटी हुई है।’

हम यह बातें कर ही रहे थे कि दरवाज़ा जो खुला था थोड़ा खटका और फिर वो दोनों अंदर आ गई।
मैंने बड़ी गरम जोशी से कहा- आइये आपका ही इंतज़ार कर रहे थे हम दोनों !
दोनों काफी शरमा रही थी और उनकी सुन्दर फुलकारी साड़ियाँ बहुत ही सुंदर लग रही थी उनके शरीर पर!

कम्मो ने कोक की बोतलें मंगवा के रखी हुई थी, वो उनको पीने को दी और फिर बातों ही बातों में कम्मो ने उनसे पूछ लिया कि क्या वो किसिंग के लिए या फिर चुदाई के लिए आई हैं?
दोनों ने सर नीचे किये ही कहा कि जैसा सोमू जी कहें वो उनको मंज़ूर है।
मैं बोला- तो फिर देर काहे की आइये शुरू करें।

मैं उन दोनों के पास गया और उनको अपने आलिंगन में ले लिया और फिर मैंने उनको लबों पर एक एक गर्म चुम्मी जड़ दी।
पहले रेवा को और फिर सांवरी को लबों पर चूमने और चाटने लगा और उनके ब्लाउज के ऊपर से उनके गोल और सॉलिड मुम्मों को दबाने लगा।
दोनों ने आँखें बंद की हुई थी लेकिन मैं समझ रहा था कि उनको बहुत आनन्द आ रहा था।
अब कम्मो ने आगे बढ़ कर उनके कपड़े उतारने शुरू कर दिए।

सब से पहले रेवा के कपड़े उतारे और वो बहुत ही खूबसूरत जिस्म वाली लड़की लग रही थी, उसके उरोज उन्नत और सॉलिड थे और एकदम मस्त सफेदी लिए हुए थे।
मैं सांवरी के कपड़े उतारने लगा और उसके ब्लाउज को उतारते ही उसके सॉलिड सांवले मम्मे जम्प करके सामने आ गए।
सांवरी का जिस्म सांवला ज़रूर था लेकिन निहायत ही सेक्सी और आकर्षण वाला जिस्म था।

जब मैंने उसका पेटीकोट नीचे किया तो उसके काले चमकीले बालों से भरी हुई चूत एकदम आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी।
उधर कम्मो भी रेवा को नग्न कर के मेरे सामने ले आई।
अब कम्मो मेरे कपड़े उतारने के लिए आगे बढ़ी तो रेवा ने उसको रोक दिया, स्वयं आगे आकर मेरे कुर्ते को उतार दिया और जैसे ही उसने मेरा कुरता उतारा, मैंने झुक कर उन दोनों का अभिवादन किया।

और फिर जब उसने मेरा पजामा उतारा तो मैंने अपने खड़े लंड के साथ फिर एक बार झुक कर दोनों का अभिवादन किया ठीक उसी तरह जैसे कि रेवा ने नदी किनारे अपने कपड़े उतारते हुए किया था।
रेवा यह देख कर झेंप गई लकिन मैं बड़ा ही आनन्दित महसूस कर था।

मैंने रेवा को उसके लबों पर चूमना शुरू कर दिया अपनी जीभ को उसके मुंह में डाल कर उसकी जीभ से खेलने लगा।
उधर कम्मो ने सांवरी को पकड़ रखा था और उसको लेकर पलंग की ओर बढ़ रही थी और उसको लिटा कर उसके मुम्मों और चूतड़ों को छेड़ रही थी।

मेरा एक हाथ रेवा की चूत में गश्त लगा रहा था और उसकी मुलायम चूत के बालों में ऊँगली चलाते हुए कभी कभी उसकी भग पर भी उंगली चला रहा था।
रेवा की चूत एकदम गीली हो चुकी थी, मैंने उसको अपनी बाहों में उठा लिया और उसकी चूत को लंड के सामने लाकर उसकी चूत में अपना लोहे के समान लंड घुसेड़ दिया। एक ही धक्के में लंड पूरा का पूरा अंदर घुस गया और मैंने उसके चूतड़ों के नीचे हाथ रख कर उसको लंड के ऊपर आगे पीछे करने लगा और साथ में अपने मुंह में उसके मुम्मों के गोल चूचुकों को चूसने लगा।

रेवा ने अपने बाहें मेरे गले में डाल रखी थी और वो झूला झूलते हुए चुद रही थी।
अब मैंने एक उंगली रेवा की गांड में भी डाल दी जिससे वो बहुत भड़क उठी और तेज़ी से मेरे हाथों के झूले में आगे पीछे होने लगी और जल्दी ही अपनी गर्दन को एकदम पीछे कर के ज़ोर से हुंकार भरती हुई झड़ गई।

जैसे ही उसकी चूत से ढेर सारा पानी छूटा, वो कांपती हुई मेरे जिस्म से चिपक गई।
मैंने उसको ले जाकर पलंग पर लिटा दिया और वहीं लेटी हुए सांवरी के साथ दूसरी तरफ जा कर लेट गया।

अब कम्मो उठ कर रेवा के पास आ गई और उसके जिस्म को पौंछने लगी और उसकी चूत में से निकल रहे रस को साफ़ करने लगी।
इधर मैंने सांवरी की टांगों में बैठ कर उसकी चूत में हाथ डाला तो वो कम्मो ने पूरी तरह से तैयार कर रखी थी। उसके होटों पर एक गर्म चुम्मी जड़ते हुए मैंने अपने खड़े लंड को सांवरी की चूत के ऊपर रख दिया और एक हल्का सा धक्का मारा और लंड सारा का सारा अंदर चला गया।

मैं अब बड़े धीरे धीरे सांवरी की फैली हुई टांगों के बीच चूत के अंदर गए लंड को आगे पीछे करने लगा।
सांवरी की टांगों को मैंने हवा में उठा दिया था सो उसको बड़े ही हल्के और कभी तेज़ धक्कों से इत्मीनान से चोदने लगा।

वो भी हर धक्के का जवाब दे रही थी और अपनी चुदाई में पूरी तरह से सहायक बन रही थी, उसके छोटे मगर सॉलिड मुम्मे मेरी छाती से चिपके हुए थे और बाद में मैं उनके चूचुकों को अपने मुंह भी ले रहा था और गोल गोल चूस रहा था।

थोड़ी देर में मैंने महसूस किया कि सांवरी जल्दी ही छूट जायेगी, मैंने धक्कों की स्पीड बहुत ही तेज़ कर दी और उसके चूतड़ों के नीचे हाथ रख कर मैं बहुत ही गहरी स्ट्रोक्स मारने लगा जो पूरी उसकी चूत के अंत तक जा रही थी।
जब वो हाय-हाय करने लगी तो मैंने उसकी कमर को कस कर अपने हाथों में ले कर बहुत ही तेज़ स्पीड से उसकी चुदाई शुरू कर दी।

वो जल्दी ही ‘उफ्फ मेरी माआआआ मैं गई…’ कहती हुए छूट गई। तब उसने अपनी बाहों में मुझको पूरी ताकत से बाँध लिया और कमर से मुझको अपनी कैद में ले लिया।
मैं ज़रा भी नहीं हिल सकता था जब तक सांवरी पूरी तरह से स्खलित नहीं हो गई।
उसके बाद ही उसने मुझको अपनी लोहे के समान गिरफ़्त से आज़ाद किया, उसके ऊपर से उठने से पहले मैंने उसको एक भाव भीनी चुम्मी दी उसके लबों पर और उसके मुम्मों को चूमते हुए मैं उसके ऊपर से उठ गया।

कम्मो ने इशारे से मेरी नज़र उसकी चूत में से निकले पानी की तरह दिलाई जो उस वक्त बिस्तर की चादर के ऊपर पड़ा हुआ था।
कम्मो बोली- वाह, कमाल की छुटास है सांवरी की चूत की, ऐसी मैंने कभी न देखी ना सुनी थी इससे पहले!
रेवा भी आ गई और सांवरी की चूत से निकले पानी को देख कर वो भी हैरान थी।

सांवरी चुप रही और कुछ नहीं बोली और ना ही हम में से किसी ने इस बात को दुबारा उठाया।
कम्मो बोली- क्यों लड़कियों, अब क्या मर्ज़ी है तुम दोनों की?
रेवा और सांवरी एक साथ बोली- एक बार और कर देते सोमू जी तो मज़ा आ जाता!
कम्मो बोली- आप दोनों तो कल रात भी रुक रही हो ना, कल फिर तुम्हारा काम कर देंगे छोटे मालिक। क्यों छोटे मालिक?
मैं बोला- हाँ हाँ क्यों नहीं, अगर दोनों की यही इच्छा है तो कल फिर इनको मज़ा दे देंगे।

कम्मो बोली- चलो तो फिर आप कपड़े पहनो और मैं आपको आप के कमरे में छोड़ आती हूँ।
दोनों कपड़े पहनने लगी और मैं उनको बड़ी हसरत से देखता रहा क्यूंकि रेवा और सांवरी दोनों ही सुंदर शरीर की मालकिन थी और उनकी टाइट चूतों को चोद कर बड़ा आनन्द आया था।

जाने से पहले दोनों ही मेरे पास आईं और मेरे खड़े लंड को चूम कर जाने लगी तो मैंने रोक दिया और उनको होटों पर एक मस्त चुम्मी देकर कहा- कल फिर आप का स्वागत करेंगे हम सब!
यह कह कर वो चली गई।
कम्मो कहने लगी- अभी तो रात के 11 बजे हैं, आप कम से कम दो और लड़कियों का काम कर सकते हैं। क्यों छोटे मालिक?

कहानी जारी रहेगी।
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