कमसिन स्नेहा की फड़कती चूत-1

(Kamsin Sneha Ki Fadakti Choot- Part 1)

मित्रो, यह कहानी मेरी हाल ही की पिछली कहानी
ललितपुर वाली गुड़िया के मुंहासे
की आगे की कड़ी है. इसके पहले आप पढ़ चुके हैं कि मुझे स्नेहा को चोदने के लिए क्या क्या जतन करने पड़े और आखिर में उसे हासिल करने में सफल हुआ.
जिन पाठकों ने पहले वाली कहानी नहीं पढ़ी है उनसे निवेदन है कि इसे अवश्य पढ़ें और मज़ा लें.
अब आगे-

जुलाई-अगस्त में कॉलेज खुलते ही स्नेहा ने B.Sc की पढ़ाई हेतु भोपाल के एक प्रसिद्ध कालेज में प्रथम वर्ष में प्रवेश ले लिया.
वो मुझे चार छह दिन में फोन भी करती रहती थी. मैं हमेशा उससे उसकी पढ़ाई की ही बात करता था और उसे अच्छा करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करता रहता था. सेक्स की बातें वो कभी छेड़ती भी तो मैं ‘हाँ हूँ…’ करके बात ख़त्म कर देता था.

भोपाल जाने के कोई दो महीने बाद सितम्बर/अक्टूबर में उसने मुझे बार बार फोन किया और मुझे भोपाल आने की लिए जिद करने लगी, अपनी चाहत बताने लगी कि वो तड़प रही है मिलने (चुदने) के लिए!
लेकिन मैं जानबूझ के नहीं गया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे कारण उसके चरित्र पर या उसके जीवन पर कोई दाग धब्बा लगे. लेकिन उसकी तो चढ़ती जवानी थी, उसका जोबन खुद उसके बस में नहीं था, मुझसे लगभग बीस पच्चीस बार चुदने के बाद उसकी काम पिपासा और भी भड़की हुई थी; जमाने की ऊँच नीच की उसे परवाह ही कहाँ थी. उसकी चूत को मेरे लंड की लत लग चुकी थी और पिछले दो माह से बिना चुदे जैसे तैसे खुद को संभाले हुए थी.

मैंने तो उससे एक बार फोन पर हंसी हंसी में कहा भी कि वो कोई बॉय फ्रेंड ढूँढ ले और अपनी तमन्ना पूरी कर ले.
लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया, कहने लगी कि लड़के विश्वास के काबिल नहीं होते धोखा देते हैं, लड़की की इज्जत करना नहीं जानते!

इसी सम्बन्ध में उसने अपनी क्लासमेट डॉली का किस्सा भी बताया कि वो अपने एक बॉय फ्रेंड से चुदवाती थी लेकिन उसके बॉयफ्रेंड ने उसे जबरदस्त धोखा दिया, बहाने से अपने घर बुलाया और अपने दो दोस्तों को भी चुपके से बुला लिया और उसको सबसे चुदवा दिया. किसी ने चूत में लंड पेला, दूसरे ने गांड में तीसरे ने मुंह में. इस तरह तीन लड़कों ने एक साथ दो घंटों तक उसे तरह तरह से पोर्न फिल्म की स्टाइल में चोदा फिर अपना पानी भी उसके बालों में मुंह में चूत में गांड में सब जगह भर दिया.
बेचारी करती भी क्या, चुद गई और किसी तरह गिरती पड़ती अपने घर पहुंची.

स्नेहा इस तरह मुझे बार बार फोन करती. कभी उलाहना भी देने लगती कि मुझसे दिल भर गया ना आपका; और कोई मिल गई होगी कमसिन कच्ची कली… उसी से खेल रहे होगे आप, तभी तो अब मेरी परवाह नहीं करते आप… इस तरह वो इमोशनल बातें करती रहती.
लड़कियों की तो आदत ही होती है ऐसे अपनेपन से शिकायत और प्यार जताने की!

मित्रो, उसी साल नवम्बर के दूसरे हफ्ते में दीवाली थी; मुझे याद है कि फर्स्ट वीक में उसका फोन आया था. मुझे उसने अपनी जान की कसम देकर कहा कि एक बार तो भोपाल आना ही होगा. साथ में ये भी कहा कि भोपाल में मुझे बढ़िया सरप्राइज भी मिलेगा.
जब मैंने सरप्राइज के बारे में पूछा तो वो टाल गई, बस अपनी कसमें दे दे कर आने को कहती रही.

इस बार मैंने उसकी कसम से मजबूर होकर हाँ कर दी और बोला कि सिर्फ एक बार ही भोपाल आऊंगा उससे मिलने, इसके बाद वो मुझे नहीं बुलायेगी, न मैं कभी फिर दुबारा आऊंगा.
और वो मान गई मेरी ये बात.

हमने प्लान बनाया कि कैसे कहाँ मिलना है. तो वो बोली कि जिस किराए के कमरे में वो रहती है वहीं पर मुझे आना है.
जब मैंने प्रश्न किया कि वो मेरे बारे में मकान मालिक को क्या परिचय देगी तो उसने कहा कि कह दूंगी कि मेरी ललितपुर वाली सहेली के पापा हैं, किसी काम से आ रहे थे तो मैंने अपने यहाँ रुकने को बुला लिया. इस तरह किसी को कोई शक नहीं होगा.
मैंने भी इस पर विचार करके हाँ कह दी और जाने की तारीख भी तय कर ली, नई दिल्ली-भोपाल शताब्दी से अपना आरक्षण भी करवा लिया.

जिस दिन मुझे भोपाल जाना था, उस दिन शनिवार था. ऐसे तो शताब्दी के ललितपुर आने का टाइम दोपहर में साढ़े बारह के करीब है लेकिन उस दिन वो डेढ़ घंटे की देरी से आई; खैर जाना तो था ही तो चढ़ गया.
भोपाल पहुँचते पहुँचते कोई पांच बज गये.

भोपाल उतर कर मैंने स्नेहा को रिंग किया कि मैं आ गया हूँ.
वो तो जैसे तैयार ही बैठी थी मेरा फोन सुनने के लिये… ‘हाय अंकल जी, जल्दी से आ जाओ अब!’
‘अरे आ तो गया ही हूँ लेकिन आना कहाँ है, भोपाल तो मैं पहली बार आया हूँ मुझे यहाँ का कुछ नहीं पता!’
‘अंकल जी, आप एक नंबर प्लेटफोर्म के बाईं तरफ वाले गेट से बाहर आ जाओ, फिर किसी ऑटो वाले से मेरी बात कराओ, मैं उसे समझा दूंगी कि कहाँ आना है.’
‘ओके बेबी…’ मैंने कहा.

और जैसे उसने कहा था, मैं प्लेटफोर्म से बाहर निकला और एक खाली ऑटो वाले से स्नेहा की बात कराई और बैठ कर निकल लिया.
ऑटो रिक्शा से भोपाल शहर का नजारा काफी अच्छा लगा. चौड़ी सड़कें, वाहनों की भीड़, सजीधजी दुकानें, सड़क की साइड में फल, चाट वालों के ठेले. मध्यप्रदेश की राजधानी के हिसाब से भोपाल की रौनक अच्छी लगी.

कोई पंद्रह बीस मिनट बाद ऑटो रुका. स्नेहा मुझे दरवाजे पर ही खड़ी मिली, मरून कलर की मेक्सी पहन रखी थी उसने, जिसमें से उसके मम्मों का आकर्षक उभार साफ़ साफ़ दिख रहा था.
लगता था कि उसके मम्मे पहले से बड़े बड़े हो गये थे.
मुझे देखते ही उसने अपने होंठो से हवा में ही मुझे चूमा और मेरा बैग मुझसे ले कर घर के भीतर ले गई मुझे!

अन्दर से अच्छा साफ़ सुथरा घर था, घर के आंगन के बगल में बरामदा और किचन था. किचन से खाना बनने की महक उठ रही थी. स्नेहा के मकान मालिक के परिवार के लोग वहीं बरामदे में बैठे थे, हमारा आपस में परिचय हुआ, मेरे बारे में तो स्नेहा ने सबको बता ही दिया था कि मैं उसका अंकल, उसकी सहेली डॉली का पापा हूँ.
लैंड लार्ड की फॅमिली में एक बुजुर्ग दंपत्ति और एक बेटा बहू थे बस!

सबसे परिचय होते होते एक स्त्री माथे तक घूंघट डाले मेरे सामने चाय, बिस्किट और पानी रख गई. कुछ ही देर बाद घर के पुरुष विदा हो गये कि उन्हें अपनी दूकान पर जाना है और वो बुजुर्ग महिला भी ये कह कर चली गई कि उनका मंदिर जाने का टाइम हो गया.

जलपान के बाद स्नेहा मुझे अपने रूम में ले गई, उसका रूम तीसरी मंजिल पर था. एक अच्छा ख़ासा बड़ा कमरा था साथ में अटैच्ड वाशरूम था, आगे खुली छत थी जिसके नीचे झाँकने पर बाजार की चहल पहल दिखती थी.
‘बढ़िया जगह है!’ मैंने सोचा.

स्नेहा ने मेरा बैग टेबल पर रखा और मेरे सीने से लग गई. मैंने भी उसे अपने बाहुपाश में कैद कर लिया. काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला, बस एक दूजे के दिलों की धक् धक् सुनते रहे.
‘कितना मनाने के बाद आये हो ना!’ उसने शिकायत की.
‘अब आ तो गया ना… आज की सारी रात कल का सारा दिन और रात तुम्हारे पास रहूँगा!’ मैंने बोला और मैक्सी के ऊपर से ही उसके मम्में दबोच के उन्हें मसलने लगा.

‘सब्र करो ना थोड़ा सा. पहले फ्रेश हो लो, चाहो तो नहा लो, सफ़र की थकान उतर जायेगी!’ वो बोली.

मैंने वैसा ही किया, नहा कर बाहर आया और खुली छत पर कुर्सी ले के बैठ गया. बढ़िया मस्त हवा चल रही थी; भोपाल का मौसम अच्छा लगा मुझे. सर्दियों का मौसम शुरू हो रहा था हवा में हल्की सी सिहरन महसूस होने लगी थी.

स्नेहा भी एक चेयर ले के मेरे सामने ही बैठ गई. अब मैंने उसे गौर से निहारा, उसके चिकने गुलाबी गाल यौवन के उल्लास से दमक रहे थे. उसके हाथ पांव भी पहले की अपेछा भरे भरे से लगे. मैक्सी उसकी जांघों में घुस गई थी जिससे उसकी पुष्ट सुडौल जंघाओं का उभार बड़ा ही मादक लग रहा था और उनके बीच बसी उसकी चूत की कल्पना करते ही मेरे लंड में तनाव भरने लगा.

मैंने अपनी कुर्सी स्नेहा के बगल में रख ली और उसके गले में हाथ डाल के उसे किस करने लगा और मैक्सी में हाथ घुसा के उसके दूध टटोलने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी, जल्दी ही वो मेरा लंड पैंट के ऊपर से ही मसलने लगी.
मैंने भी उसकी मैक्सी जाँघों तक खिसका दी, नीचे से वो एकदम नंगी थी; उसकी गर्म गर्म चूत को मैं सहलाने लगा. मेरे छूने मात्र से ही उसकी चूत गीली रसीली होने लगी और मेरी उंगलियाँ चूत रस से भीग गईं.

‘पैंटी ब्रा वगैरह नहीं पहनती घर में?’ मैंने उसकी झांटो में उंगलियाँ पिरोते हुए पूछा.
‘पहनती तो हूँ. बस आज ही नहीं पहनी. आप का इंतज़ार था कि आप आओ और…’ वो चहकी.
‘तो ये लो मेरी जान…’ मैंने अपना लंड पैंट से बाहर निकाल के उसे थमा दिया.

लंड मिलते ही वो उस पर झुक गई और गप्प से मुंह में लेकर चूसने लगी.
‘चलो अंकल जी रूम में चलो! एक राऊँड जल्दी से लगा लेते हैं फिर खाना खायेंगे!’
‘रूम में नहीं गुड़िया. यहीं छत पर चोदूँगा तुम्हें. देखो न कितनी मस्त हवा चल रही है’
‘ठीक है जैसे आप चाहो!’ वो बोली और जीने का दरवाजा छत की तरफ से बंद कर के आई और मैक्सी उतार के फेंक दी और नंगी होकर मेरे सामने खड़ी हो गई.
फिर उसने एक मादक अंगड़ाई ली, हाथों के साथ साथ उसके मम्में उठ गये और कांख के बाल दिखने लगे. एक मस्त नजारा सामने से गुजर गया.

मैंने चारों ओर देखा आसपास के छतों से देखे जाने का कोई खतरा नहीं था क्योंकि सब मकान नीचे ही थे वैसे भी अब अँधेरा घिरने लगा था तो किसी के देखे जाने की कोई सम्भावना नहीं थी.

मैंने भी अपने कपड़े फुर्ती में उतार फेंके और उसे गले लगा लिया. उसके बदन का गर्म गर्म स्पर्श बहुत प्यारा लग रहा था. फिर मैंने उसे छत पर लगी लोहे की रेलिंग पर झुका दिया और पीछे से ही उसकी चूत में एक ही बार में लंड पेल दिया.
‘ऊई अंकल जी… धीरे, आराम से घुसाओ न!’

लेकिन मैंने उसकी परवाह न करते हुए लंड को थोड़ा पीछे खींचा और फिर एक करारा शॉट लगा दिया इस बार लंड अच्छी तरह से उसकी चूत में गहराई तक फिट हो गया और उसकी बगल में हाथ डाल कर उसके मम्में पकड़ लिए.
‘हाई… मम्मी मर गई. कैसी बेरहमी से घुसेड़ दिया न फिर से!’
लेकिन मैंने उसके बोलने की परवाह किये बगैर चूत की चुदाई ठुकाई शुरू कर दी.

जल्दी ही वो भी अपनी चूत से लंड को जवाब देने लगी. जब हम लोग थक गये तो थोड़ा रुक गये. रेलिंग से नीचे झाँक कर देखा तो बाजार की चहल पहल, दुकानों की रंग बिरंगी रोशनी, ट्रैफिक की भीड़भाड़ और शोर… स्नेहा की चूत में लंड फंसाए हुए ये सब देखना बहुत ही रोमांचकारी, आह्लादकारी लग रहा था.
‘स्नेहा, नीचे सड़क पर झांको, कितना मस्त नजारा है.’ मैंने उसके मम्में निचोड़ते हुए कहा.

‘हाँ सच में अंकल जी. मैंने सोचा भी नहीं था कि मैं कभी इस तरह छत पर इस पोज़ में सेक्स करूंगी.’ वो बोली और अपनी कमर आगे पीछे करने लगी; मैं स्थिर ही खड़ा रहा था लेकिन वो मस्ती में डूबी हुई अपनी ही धुन में चूत को आगे पीछे करते हुए लंड को लीलती रही.

कुछ देर तक ऐसे ही चुदने के बाद वो अलग हट गई और घूम कर मेरे सामने आ गई. मैंने उसका एक पैर बहुत ऊपर उठा कर उसकी एड़ी अपने कंधे पर रख ली. इससे उसकी खुली हुई बुर मेरे लंड के सीध में आ गई. मैंने उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींचा और फचाक से लंड फिर से घुसाया और उसकी चूत मारने लगा.
उसने भी एक हाथ रेलिंग पर रखा और दूसरा हाथ से मेरे कंधे का सहारा ले लिया.

अब चुदाई एक्सप्रेस अपनी पूरी रफ़्तार से मंजिल की ओर दौड़ पड़ी.

‘अंकल जी जल्दी… मैं आने वाली हूँ.’ कुछ ही देर बाद वो बोली और मिसमिसा कर अपनी उंगलियाँ मेरे कंधे में गड़ा दीं और झड़ने लगी. इधर मेरा काम भी करीब ही था, आठ दस धक्के और.. और मैं भी झड़ गया उसकी चूत में!
फिर हम लोग अलग हट गये और कुर्सी पर बैठ कर सुस्ताने लगे.

‘आह अंकल जी, मज़ा आ गया. कब से तड़प रही थी इस सुख के लिए आज तृप्त हुई जा के… लेकिन आपने मेरे भीतर ही भर दिया न अपना रस, मैं प्रेगनेंट हो गई तो?’ वो शिकायत भरे स्वर में बोली.
‘तू चिंता मत कर, मैं प्रेगनेंसी को रोकने वाली गोली लाया हूँ अभी खा लेना!’ मैंने कहा.
‘ओके, अभी खा लूंगी सोते समय. अंकल जी. कब से इन्तजार था इस पल का. थैंक्स कि आप आये!’ वो अपना सर मेरे कंधे पर रखते हुए बोली.
मैं चुप रहा और उसे दुलारता रहा.

‘अच्छा स्नेहा, एक बात बता, जब हमने पहली बार चुदाई की थी उसके बाद तुम्हें कैसा लगा था, मतलब चलने फिरने में या उठने बैठने में कोई तकलीफ हुई थी?’
‘हाँ वो… उस दिन अच्छा, आप तो चले गये थे मुझे रगड़ के… मैं आपको दरवाजे तक छोड़ने गई थी उसके बाद मेरे पैर ही ठीक से नहीं पड़ रहे थे; ऐसा लगता था कि पांव रखती कहीं हूँ पड़ता कहीं है. चप्पल पहनने के बाद भी अजीब सी चाल हो गई थी मेरी. सोफे पर बैठी तो भी अटपटा सा लगा था. फिर मैं पानी गर्म किया और गुनगुने पानी से अपनी चूत अच्छे से धोई और सेंकी, पांव भी धोये.’ वो बोली.

‘तेरे भाई को कोई शक नहीं हुआ, तेरी बदली बदली चाल देख के?’
‘हुआ था. मुझसे पूछ रहा था कि मेरे पैर में क्या हो गया. मैंने कह दिया था की बर्तन मांजते समय थाली गिर गई थी पांव पे!
लेकिन अंकल जी आप ये बातें आज क्यों पूछ रहे हो इतने दिनों बाद?’
‘अरे ऐसे ही. लड़की की पहली चुदाई के बाद उसे चलने फिरने में कैसे फील होता है ये जानना था!’
हम लोग ऐसे ही कोई एक घंटे तक बातें करते रहे.

कमसिन जवानी की कहानी जारी रहेगी.
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