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प्रेषक : अमन
मैं अमन अपने शहर में नया था, वहाँ पहुँचते ही मैंने एक अच्छे-खासे बड़े कॉलेज में अपना दाखिला कराया। मुझे बचपन से ही चूतों का शौक रहा है, मैं रोज दिन में 3-4 बार अपने लैपटॉप में कामुक फिल्में देखा करता था और हस्थमैथुन से अपने जिस्म की कामुकता की प्यास को किसी हद तक बुझा लेता था, पर चोदने का पहला मौका तो मुझे अपने कॉलेज में ही पहली बार मिला जिसने मेरे लंड को कामुकता की गहरी नींद से जगा दिया।
एक दिन कॉलेज में जब टीचर ने मुझसे एक सवाल पूछा तो, वो उसका जवाब मुझे नहीं पता था पर तभी मेरी कक्षा की पढ़ाई में अव्वल रहने वाली मीनू ने मुझे बचाने के लिए उस सवाल का तुरंत खड़े होकर सही उत्तर दे दिया और मेरी तरफ देखकर एक हल्की सी तसल्ली भरी मुस्कान दी, जिससे मेरा रोम-रोम खड़ा हो गया। उसके मुस्कुराते हुए होंठ तो जैसी मेरी आँखों में बस गए हों।
मीनू हमारी क्लास की सबसे होशियार और सुन्दर लड़की थी, जिसके कारण कॉलेज के सभी छात्र उसके ऊपर मरते थे, पर मीनू किसी को घास तक नहीं डालती थी। मीनू रंग मैं गोरी-चिट्टी थी और उसके चूचों का आकार भी लगभग 34 इंच ही था और उसकी पिछाड़ी तो जैसे किसी घोड़ी की तरह उठी हुए थी।
कॉलेज की छुट्टी के बाद मैं जैसे ही कक्षा से निकला तो मेरी नज़र मीनू पर पड़ी, वो अपनी बेंच पर बैठ अपना सर नीचे झुकाए हुए एक मैगज़ीन पढ़ रही थी। मैंने जैसे ही झुक कर मैगज़ीन देखी तो मैं हक्का-बक्का रह गया क्यूंकि उसमें बड़े-बड़े मोटे-लंबे तने हुए लंडों के चित्र बने हुए थे, जिन्हें वो खूब लालसा से देख रही थी।
जैसे-तैसे जब मैं घर गया तो मैंने मीनू की चूत के नाम का हस्तमैथुन किया। जिससे मेरे दिल को राहत मिली और मेरे लंड को चाहत मिली।
अगले दिन इतवार था जिसकी वजह से कॉलेज की छुट्टी थी। उस दिन मुझे उसकी चूत की बहुत याद आई और मैंने फिर हस्तमैथुन किया और तब जाकर समझ आया कि किस तरह चूत का नशा हम मर्दों को दीवाना बना देता है।
अगले दिन कॉलेज में क्लास खत्म होने के बाद जब मैं मीनू के पास गया तो,
मीनू- क्या हुआ ! कोई खास बात?
मैं- नहीं बस कल के लिए तुम्हारा शुक्रिया अदा करने आया था।
फिर मैं अपने को संभाल नहीं पाया और पूछ ही लिया कि काम-क्रीड़ा बहुत पसंद है ना…!!
मीनू (शरमाते हुए)- क्यूँ… तुम्हें इससे क्या? (नज़रें नीचे झुका कर)
मैं- तुम सब समझती हो यार… अच्छा यह बताओ आज तक कभी असली फौलादी लंड देखा है?
जिस पर वो कुछ नहीं बोली और चुपचाप कक्षा के बाहर चली गई। मैं जानता था कि आज मैं घर खाली हाथ नहीं जाऊँगा और मैंने खेल-कूद के समय जब क्लास में कोई नहीं था तो मैंने मीनू को चुपके से इशारे में बुलाया और उसका हाथ पकड़ उसे अपनी बाँहों में खींच लिया। मैं जानता था कि अभी समय बर्बाद किया तो हाथ आई दावत निकल जाएगी।
तभी मैंने एक हाथ से उसे अपने फ़िल्मी मर्दाने ढंग से अपनी बाँहों में उसके हाथ को सहलाने लगा, तो दूसरी और नीचे से उसकी सलवार के ऊपर ही अपना हाथ फेरने लगा।
जिस पर मीनू कहने लगी- मुझे कुछ हो रहा है… प्लीज़ छोड़ दो !
तभी मैंने दोनों हाथों से उसके बालों के पीछे की और झटक कर उसके रसीले लबों को चूसने लगा जिस पर मीनू लंबी-लंबी साँसें लेने लगी। उसे दोनों चूचे मेरी छाती से मसले जा रहे थे और मैं उसके दोनों चूतड़ों को मसलने लगा।
मीनू ने गहरी-गहरी सांसें लेते हुए कहा- चोद दे मुझे… अब यह रांड थक चुकी है मैगज़ीन में छपे लंडों को देखते हुए… थक चुकी हूँ मैं हस्तमैथुन करते-करते।”
तभी मैंने मीनू के चूचों को मसलते हुए उसके कुर्ते को उतार दिया और उसके सफ़ेद ब्रा का हुक जंगलियों की तरह तोड़ कर फ़ेंक दिया। अब मेरे पास उसके मीनू के मोटे-मोटे चूचे थे, जिनमें बाएं वाले के निप्पल के ऊपर एक काला तिल था जिसे मैंने पहले मैंने पानी जीभ सहलाई और बाद में उसके चोंचों को पीने लगा। जिससे उत्तेजित होकर मीनू अपने हाथ को अपनी सलवार के अंदर डाल अपनी चूत को रगड़ने लगी।
फिर मैं अपना हाथ मीनू की पैंटी के ऊपर रगड़ने लगा। मीनू उस वक्त जोर-जोर से सिसकियाँ भरने लगी और उसकी पैंटी पूरी तरह गीली हो चुकी थी। मैंने अपना लंड निकाल कर मीनू के हाथ में थमा दिया।
जिस पर मीनू पहली बार लंड को अपने हाथों में देख घबरा गई और बोली, “ओहो… ये कितना बड़ा है !
मैं- एकदम तेरे बाप की तरह है ! (जोश में)
जिस पर मीनू की हल्की सी हंसी भी छूट पड़ी। मीनू ने लाल रंग की पैंटी पहनी हुई थी। मैंने ऊँगली मीनू की चूत में डाली और अपनी रफ़्तार बढ़ाते हुए ऊँगली अंदर-बाहर करने लगा।
मीनू की सिसकारियाँ गहरी होती चली गईं- आआहह… आआहहहह..
फिर मैंने अपना लंड मीनू के मुँह में दे डाला और उसे लंड को चूसने के लिए कहा। मीनू ज़ोरों से मेरा लंड चूसने लगी और बोली- अब से यह लंड मेरा.. और मेरी चूत तेरी।
चूसम-चुसाई की क्रिया के बाद आई अब काम-क्रीड़ा के असली पढ़ाव की बारी यानी अब चुदम-चुदाई की बारी थी।
मैंने जैसे ही मीनू की पैंटी खींच कर उतारी तो पता चला कि उसने अपनी चूत तो पूरी चिकनी कर रखी थी, उस पर बार एक भी बाल नहीं था। मैंने मीनू की गीली चूत काफी देर तक उँगलियाँ करने करने के बाद जब अपना लंड उसकी चूत पर टिकाया तो मीनू की तड़प और बढ़ गई और वो नागिन की तरह बल खाने लगी।
जैसे ही मैंने एक झटका मारा तो मीनू को जोर का दर्द हुआ और वो चीख पड़ी- आहह मूऊऊऊ…
मगर मेरा लंड मीनू की चूत में नहीं घुस पा रहा था। मैंने हिम्मत नहीं हारी, पहले कुछ देर को चूमा, सहलाया और जैसे ही स्थिति सामान्य हुई, अपने हाथों से उसकी कमर पर पकड़ बना कर और खुद को सहारा देकर मैंने एकदम जोर से लंड को मीनू की चूत में पूरा का पूरा लंड ठूंस दिया।
मीनू की हालत खराब हो गई वो फिर से एक जोर से चिल्लाई और बोली- कुत्ते, तूने मेरी चूत को भोसड़ा बना दिया।
उसकी चूत में से खून निकल रहा था और मेरा लंड भी बुरी तरह खून से लथपथ हो गया था। मैं अपना लंड जोर-जोर से मीनू की चूत में आगे-पीछे कर रहा था और उसकी चूत से मिले कामुकता के सुकून में डूबा हुआ था।
मीनू की आँखों में से आँसू आने लगे थे, मैंने उसे चूमते हुए प्यार से बहलाया। मीनू की चूत फट चुकी थी और उसे फाड़ने का श्रेय मुझे जाता है।
लगभग 15 मिनट तक मीनू की चूत चोदने के बाद मैं झड़ने ही वाला था, सो मैंने मीनू के चूचों को भींचते हुए उन पर अपना सारा माल गिरा दिया।
खेल कूद के पीरियड का समय खत्म होने से पहले मैंने एक लड़के के थैले में से पानी की बोतल निकाली और वहाँ फर्श पर पड़े खून पर गिराकर उस पर थोड़ी मिट्टी डाल दी। फिर इसी के साथ मीनू के होंठों को मैंने आखिरी बार चूसा और हम दोनों ने जल्द से अपने कपड़ों को पहना और अपनी-अपनी सीटों पर बैठ कर सबके आने का इंतजार करने लगे।
इसके बाद मेरा जब भी मन करता तो मीनू की साथ काम-क्रीड़ा का भोग कहीं भी गुप्त स्थान पर ले लेता। यह मेरी पहली चुदाई है यारों शायद आप सबको पसंद आए। मुझे मेल जरूर कीजिए।
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