बदतमीज़ की बदतमीज़ी : हरिगीतिका छन्द में
फैली सुहानी चाँदनी हर, वृक्ष के पत्ते हिलें। सूखे पड़े दो होंठ के ये, पुष्प चाहूँ फिर खिलें। क्यों रुष्ट हो इस क्षण प्रिये तुम, ना करो शिकवे गिले। सोना नहीं है आज की इस, रात बिन तुमसे मिले। झुककर दिखा ना चूचियाँ यूँ, इस तरह अंदाज से। नारी तुँ होकर बेशरम हम, पुरुष लज्जित […]