चाहत का इन्तज़ार
हमारे गाँव में पवन के पिताजी की करियाने की दुकान थी। वह अपने पिताजी की तरह मोटू व अकड़ू था। मेरे पिताजी नगर की नगरपालिका में क्लर्क थे, रोज छः किलोमीटर साइकिल चला कर दफ़्तर जाते और शाम को घर लौटते। पवन के अतिरिक्त हमारे साथ में वह भी खेलती थी- पड़ोस की हमउम्र नाजुक-नरम […]