शालू की गुदाई-1

दोस्‍तो, आपने मेरी पिछली कहानी केले का भोज को तहेदिल से पसंद किया। शुक्रिया। उससे पहले स्‍वीटी या जूली, पुष्‍पा का पुष्‍प आदि कहानियों ने भी आपका भरपूर मनोरंजन किया। आपने उसकी भाषा की स्‍तरीयता और कल्‍पनाशीलता की प्रशंसा की। आपसे मिली प्रतिक्रियाओं ने मेरा उत्‍साह बढ़ाया है। अब मैं अगली कहानी लेकर आपके सामने […]

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शालू की गुदाई-2

21 मई का बेसब्री से प्रतीक्षित दिन ! हमारी शादी की सालगिरह ! शालू को उसका तोहफा देने का दिन ! “क्या पहनकर जाना ठीक रहेगा?” मैंने सुझाया कि शलवार-फ्रॉक या शर्ट-पैंट पहनकर मत जाओ, शलवार या पैंट उतारने में नंगापन महसूस होगा। क्यों न पहले से ही थोड़ा ‘खुला’ रखा जाए। मैंने सुझाया कि […]

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शालू की गुदाई-3

उसने कहा- लगातार चुभन से कभी कभी सिहरन होती है इसलिए उसे उसके हाथों को कुर्सी के हत्थों से बांधना होगा। शालू तब तक शर्म पर काबू पा चुकी थी, उसने पूछा क्या ऐसा करना जरूरी है? “No, but it will help !” (नहीं, लेकिन यह अच्छा रहेगा) शालू एक सेकंड के लिए ठहरी, फिर […]

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बाबा की शीशी

प्रेषक : जो हण्टर यदि घर में एक अदद भाभी हो तो मन लगा रहता है। उसकी अदायें, उसके द्विअर्थी डॉयलोग बोलना, कभी कभी ब्लाऊज या गाऊन में से अपने सुडौल मम्मे दिखाना… दिल को घायल कर देती है। तिस पर वो हाथ तक नहीं धरने देती है। भाभी की इन्हीं अदाओं का मैं कायल […]

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दर्द है, फिर भी चाह है

प्रेषक : रॉकी कुमार मैं नौकरी की तलाश में हैदराबाद गया हुआ था, वहाँ मैं एक बॉयज़ हॉस्टल में रुका था अपने कुछ दोस्तों के साथ। जहाँ यह हॉस्टल था वो जगह लड़कियों से हमेशा भरी रहती थी और मैं हमेशा सोचता रहता था कि मुझे कब कोई मिलेगी क्योंकि मेरे बाकी सब दोस्तों के […]

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वो बुरके वाली

नमस्कार दोस्तो, सबसे पहले आप सबका धन्यवाद करता हूँ कि आप सभी को मेरी पिछली कहानियाँ काफी पसंद आई और आपके सुझावों और सराहना के लिये शुक्रिया। मेरी पिछली कहानी को पढ़ने के बाद मुझे दोस्ती के काफ़ी ऑफर आये। एक छोटी सी प्रार्थना है कि कृपया मुझसे मेरी महिला मित्रों के नाम व नंबर […]

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लिंगेश्वर की काल भैरवी-1

(एक रहस्य प्रेम-कथा) मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ, मेरी यह कहानी मेरी एक ई-मित्र सलोनी जैन को समर्पित है जिनके आग्रह पर मैंने अपने इस अनूठे अनुभव को कहानी का रूप दिया है। … प्रेम गुरु अपना पिछला जन्म और भविष्य जानने की सभी की उत्कट इच्छा रहती है। पुरातन काल से ही इस विषय […]

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लिंगेश्वर की काल भैरवी-2

(एक रहस्य प्रेम-कथा) लिफ्ट से नीचे आते मैं सोच रहा था कि ये औरतें भी कितनी जल्दी आपस में खुल कर एक दूसरे से अपने अंतरंग क्षणों की सारी बातें बता देती हैं। मधु मेरे सामने तो लंड, चूत और चुदाई का नाम लेते भी कितना शर्माती है और इस जीत रानी (रूपल) को सब […]

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गंधर्व विवाह

प्रेषक : अन्नू निशा मेरी एक मात्र लंगोटिया दोस्त है। एक दिन की बात है, जब मैं निशा के बुलाने पर उसके घर गया तो उसके घर वाले कहीं बाहर गए हुए थे। घर में हम दोनों ही अकेले थे, उसके जान-पहचान के कोई बाबा उसके घर पर आये हुए थे। निशा बोली- ये बहुत […]

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लिंगेश्वर की काल भैरवी-3

(एक रहस्य प्रेम-कथा) आज हमारा खजुराहो के मंदिर देखने का प्रोग्राम था। रात के घमासान के बाद सुबह उठने में देर तो होनी ही थी। सत्यजीत का जब फ़ोन आया तब आँख खुली। वो बोल रहा था “ओह … क्या बात है गुरु ? रात में ज्यादा स्कोर कर लिया था क्या ?” “अरे नहीं […]

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लिंगेश्वर की काल भैरवी-4

(एक रहस्य प्रेम-कथा) मंदिर आ गया था। बाहर लम्बा चौड़ा प्रांगण सा बना था। थोड़ी दूर एक काले रंग के पत्थर की आदमकद मूर्ति बनी थी। हाथ में खांडा पकड़े हुए और शक्ल से तो यह कोई दैत्य जैसा सैनिक लग रहा था। उसकी मुंडी नीचे लटकी थी जैसे किसी ने काट दी हो पर […]

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लिंगेश्वर की काल भैरवी-5

(एक रहस्य प्रेम-कथा) मैं उसे चूमता हुआ नीचे मदनमंदिर की ओर आने लगा। पहले उसके सपाट पेट को उसके पश्चात उसकी नाभि और श्रोणी प्रदेश को चूमता चला गया। उसके योनि प्रदेश तक पहुंचते पहुँचते मेरा कामदण्ड (लिंग) तनकर जैसे खूंटा ही बन गया था। रोम विहीन रतिद्वार देख कर तो मैं मंत्र मुग्ध हुआ […]

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यह कैसा मोड़-1

प्रेषक : विजय पण्डित सिनेमा हॉल में महक का हाथ मेरे हाथ के ऊपर आ गया। मुझे एक झटका सा लगा। मैंने धीरे से महक की तरफ़ देखा। उसकी बड़ी बड़ी आँखें मेरी तरफ़ ही घूर रही थी। फिर उसने बलपूर्वक मेरा हाथ मेरी सीट पर ही गिरा लिया ताकि एकदम कोई देख ना सके। […]

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यह कैसा मोड़-2

प्रेषक : विजय पण्डित “यह तो गार्डन है… किसी ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी…” “तो फिर…?” “मौका तलाशते हैं… किसी होटल में चलें…?” “अरे हाँ… मेरी सहेली का एक होटल है वहाँ वो लंच के बाद आ जाती है… उसके पति फिर लंच पर चले जाते हैं… वहाँ देखती हूँ…” रोहित और शिखा […]

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तीन सहेलियाँ

फ़ुलवा “और बता क्या हाल है?” “अपना तो कमरा है, हाल कहाँ है?” “ये मसखरी की आदत नहीं छोड़ सकती क्या?” “क्या करूँ? आदत है, बुढ़ापे में क्या छोड़ूं? साढ़े पांच बज गए शैला नहीं आई?” “बुढ़ऊ झिला रहा होगा।” “तू तो ऐसे बोल रही है, जैसे तेरे वाले की जवानी फूटी पड़ रही हो।” […]

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