तलाकशुदा लड़की की मदद का पारितोषिक

(Office Girl Chudai Kahani)

ऑफिस गर्ल चुदाई कहानी में मैंने अपने ऑफिस में नई आई लड़की की मदद की. उसके बदले उसने मुझे सेक्स का मजा दिया. असल में उसे भी सेक्स की जरूरत थी.

मैं मुकेश हूँ, महासमुंद (छ. ग.) का रहने वाला हूँ।
काफी साल से मैं अन्तर्वासना का पाठक रहा हूँ.

आज मैं आप लोगों से अपने जीवन का एक अंश साझा करने जा रहा हूँ.
आप भी इस कहानी पर अपने विचार मुझसे जरूर साझा करें.

यह ऑफिस गर्ल चुदाई कहानी अगस्त 2018 की है.
उस वक्त मैं एक मार्केटिंग कंपनी में नौकरी करता था.

मेरे बॉस और हम 6 लड़के ही थे.
3 मार्केटिंग, 2 हेल्पर, 1 ऑफिस बॉय।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और ऐसे ही 4 महीने हो गए.

एक दिन जब मैं ऑफिस गया तो बॉस ने कहा कि टेलीकॉलिंग और बैक ऑफिस काम के लिये एक लड़की जॉइन कर रही है.

तो मेरे मन में लड्डू फूटा, जैसा सब लड़कों के मन में फूटता है.
तब मैंने कहा- यह तो अच्छी बात है!

फिर थोड़ी देर बाद उस लड़की का कॉल आया तो उसने बॉस को ऑफिस का एड्रेस पूछा.
बॉस के बताने पर उस लड़की को समझ ही नहीं रह था.
शायद वह लड़की यहाँ पे नई थी और साथ ही पैदल ही आ रही थी.

तो बॉस ने उसको पूछा कि तुम जहाँ भी हो, वहीं पर रहो. मुकेश को तुम्हें लेने के लिए भेजता हूँ.
ऐसा कहकर उन्होंने फोन रख दिया.

इधर अंदर से मैं बहुत खुश हो रहा था.

तब बॉस ने कहा- मुकेश यह अनीता का नम्बर है. इसको कॉल कर लेना और उसको ऑफिस लेकर आना!

पहले तो मैंने दिखावटी आना कानी की, फिर मैं मान गया।

अब मैंने उसको कॉल किया और जगह पूछ के अपनी गाड़ी लेकर निकला.

पहुंचने के बाद उसको देखा तो उसने स्कार्फ लगाया था तो उसका चेहरा देख नहीं पाया.
फिर मैंने उसको गाड़ी पर बिठाया और ऑफिस लेकर आ गया।

बॉस ने उसका वेलकम किया और उसको पूरा काम समझा दिया.

मैंने उसे अपना परिचय दिया और उसने बताया- मैं यहाँ पे किराये पे रहती हूँ और कॉलेज करते करते जॉब कर रही हूँ।
इसी बीच बॉस आ गये और मुझ पर चिल्लाने लगे लड़की के सामने अपनी धौंस जमाने के लिए- तुझे मार्केटिंग के लिये देरी नहीं हो रही क्या?

तो मैंने भी कह दिया- मैं तो कब का निकल गया होता. आपने ही तो अनीता को लाने भेजा था, भूल गए क्या?
इस बीच बॉस और मेरी थोड़ी कहा सुनी हो गयी.

फिर मैं निकल गया।

शाम को रिपोर्टिंग देकर मैं अपने घर आ गया ओर फ्रेश होके छत पर टहल रहा था.

तभी अनीता का मैसेज आया- सॉरी!
तो मैंने जानबूझकर पूछा- कौन?
अनीता- बहुत जल्दी भूल गये … मैं अनीता, जिसको पिक करने की वजह से आपको बॉस की डांट खानी पड़ी।
मैं- ओह अनीता! ऐसा कुछ नहीं, बॉस तुमको दिखाना चाहते थे कि वे कितने सख्त हैं और शायद जल भी रहे थे क्योंकि मैं तुमसे बात रहा था … इसलिये!
और हम दोनों हँस पड़े.

अनीता- अच्छा! मुझे लगा कि मेरी वजह से आपको खामखाह डांट पड़ गयी।
मैं- तो क्या हुआ … एक खूबसूरत लड़की के लिए इतना तो झेल ही सकता हूँ!
मैंने अपने पत्ते चल दिये.

अनीता- वाह जी वाह, बड़ी लाइन दे रहे हो, मैं समझ रही हूँ आपका मतलब!
मैं थोड़ा झेंपते हुए- मेरा मतलब वो नहीं था मैडम!

अनीता- अच्छा! वैसे मैं लड़की नहीं हूँ।
मैं- व्हाट?
अनीता- मतलब मैं एक शादीशुदा हूँ लेकिन मेरा डिवोर्स हो गया है और मेरा 7 साल का बच्चा भी है!
ऐसा बोलकर वह थोड़ा उदास हो गयी.

मैं- ओह सॉरी! मुझे पता नहीं था … वैसे आप बिल्कुल भी नहीं लगती कि आप 6 साल के बच्चे की माँ हो! बहुत ही मेन्टेन करके रखा है अपने आपको!
अनीता- हाँ, अब तो शादी से भरोसा उठ गया है।

मैं- मैं इसमें कुछ कमेन्ट नहीं कर सकता. लेकिन इतना कह सकता हूँ कि कभी किसी हेल्प की जरूरत हो तो मुझसे कह सकती हो।
अनीता- अच्छा! एक दिन बात किये भी नहीं हुए इतने दिलदार बन रहे हो, दाल में कुछ काला है मुकेश बाबू?
मैं- पूरी दाल ही काली है मोहतरमा, तुम कुछ की बात करती हो?
हम दोनों ठहाके मार के हँस दिए.

अनीता- तुम जैसे जिंदादिल लोग बहुत कम मिलते हैं. वैसे तुमने अपने बारे में बताया नहीं, गर्लफ्रैंड तो होगी ही?
मैं- गर्लफ्रैंड पहले थी. अभी मेरी शादी हो चुकी है मोहतरमा!
यह सुनते ही वह चुप हो गयी.

“चुप क्यों हो गयी मैडम?”
अनीता- कुछ नहीं, मुझे लगा आप कुँवारे हो, ठीक है मैं बाद में कॉल करती हूँ.
ऐसा कहकर उसने फोन रख दिया.

उसके बाद हम कभी ऑफिस में और व्हाट्सएप पे बातें करने लगे.
ऐसे बात करते करते 1 माह निकल गया।

1 दिन ऑफिस में वह थोड़ा उदास दिख रही थी तो मैंने उससे पूछा- आप उदास क्यों हो?
अनीता- बंटी (अनीता का बेटा) की तबीयत ठीक नहीं है, डॉ. ने दवाई दी है पर मुझे उसकी चिंता सता रही है!
उसकी आँखें भर आयी.

मैं उसके कंधो पे हाथ रख के बोला- सब ठीक हो जाएगा. आप बॉस से बात करके ऑफिस से छुट्टी लो और बंटी का ध्यान रखो. किसी भी समय मेरी हेल्प की जरूरत हो तो मुझे बताना।
अनीता उठी और बॉस से बात करके चली गयी.

अगले दिन सुबह 9 बजे उसका कॉल आया- बंटी की तबियत ज्यादा बिगड़ गयी है, हॉस्पिटल में एडमिट कराना है, तुम आ सकते हो क्या?
मैं- ठीक है, मैं आता हूँ.

थोड़ी देर बाद मैं अनीता के घर पहुंचा और हम बंटी को हॉस्पिटल लेकर गये.

वहाँ चेकअप के बाद बंटी को ग्लूकोज चढ़ाया.
डॉक्टर ने बताया कि बंटी कमजोर हो गया है ग्लूकोज देने से नॉर्मल हो जाएगा.

अनीता- मैं यहाँ पर हूँ, आपको ऑफिस के लिए देर हो रही है. आप ऑफिस जाओ, कुछ लगेगा तो मैं बता दूंगी।
मैं- ठीक है, आप बॉस को बता दो कि आज ऑफिस नहीं आ पाओगी, मैं निकलता हूँ।

ऑफिस पहुंच के वहाँ काम निपटा कर मैं मार्केटिंग के लिये निकल गया और सीधे हॉस्पिटल गया.
तो अनीता मुझे प्रश्न बोध से देखने लगी.

मैं बोला- आपके लिए टिफिन देने आया हूँ. और ना मत करना, चुपचाप खा लो, बंटी का ख्याल रखना, मैं निकलता हूँ.
अनीता- थैंक्यू, आपने मेरी बहुत हेल्प की।
मैं- ठीक है, मैं जाता हूँ।

ऐसा कहकर मैं निकल गया.

शाम को 4 बजे अनीता का कॉल आया और बोली- 1-2 घण्टे बाद बंटी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर देंगे.
उसके आगे बोलने से पहले ही मैंबोला- ठीक है, आप टेंशन मत लो, मैं पहुंच जाऊँगा।

करीब 6 बजे हॉस्पिटल पहुंचा तब तक अनीता ने डिस्चार्ज की सारी फार्मेलिटिस पूरी कर दी थी और 10 मिनट बाद हम बंटी को लेकर उसके घर पहुंचे।

बंटी को बिस्तर पे लिटा कर मैं वाशरूम में फ्रेश होकर बाहर निकला.
तब तक 8 बजने वाले थे.

तो अनीता बोली- कोई नौटंकी मत दिखाना, खाना बना रही हूँ चुपचाप खा लेना!
इस पर हम दोनों हँस पड़े.

मैंने सिर हिला कर हामी भर दी.

इधर मैंने अपनी पत्नी को कॉल किया कि आज मार्केटिंग के लिए बाहर आया हूँ. लौटने में मुझे देरी हो जाएगी और खाना यहीं से खाकर आऊँगा, तुम भी खा लेना.

1 घण्टे बाद अनीता- खाना तैयार है. बंटी को खाना खिला दिया है. चलो हम भी खाते हैं।
फिर हमने खाना खाया और थोड़ी देर बाद मैं जाने लगा।

अनीता- आपने आज मेरी बहुत मदद की, मैं इस अहसान को कभी नहीं भूल पाऊँगी.
ऐसा बोलते हुए उसकी आँखों में आँसू आ गए.

मैं- अरे तुम फिर रोने लगे गई. दोस्त होने के नाते इतना तो कुछ भी नहीं है मोहतरमा, ऐसे वक्त में दोस्त ही तो काम आते हैं।
इतना कहते ही अनीता ने मुझे गले लगा लिया.

ऐसे उसके अचानक गले लगाने से मैं चौंक गया.
लेकिन मुझे अच्छा लगा.

अनीता- इतने दिनों बाद किसी मर्द को गले लगाया है मैंने!
मैं चुप था.

“क्या आज रात आप यहीं रुक सकते हो?”
मैं- क्यों भई … अब हमारी क्या जरूरत?

इतने में उसने मुझे होठों पे किस कर दिया.
अब मैं भी उसका साथ देने लगा और उसको अपने करीब चिपका के अनीता के होठों को किस कर रहा था.

फिर धीरे धीरे मैं अपना हाथ उसके बूब्स पे रख के दबाने लगा.
वह मेरा पूरा सहयोग दे रही थी.

उसने कहा- कमरे के अंदर चलते हैं!
और कमरे के अंदर पहुचते ही उसने दरवाजा लगा दिया.

फिर हम दोनों एक दूसरे पर टूट पड़े।

एक एक करके दोनों के कपड़े निकलते गए और फिर हम पूरे नग्न हो गए।

उसके बाद मैं उसके बूब्स को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा और एक हाथ से दूसरे बूब को दबा रहा था.
उसके दोनों बूब्स को ऐसे चूस रहा था जैसे दूध निकल आए।

10 मिनट चूसने के बाद उसने कहा- अब मुझसे रहा नहीं जा रहा, प्लीज करो ना!

मौके की नजाकत को देखते हुए मैंने अपने लंड को उसकी चूत में सेट किया और धीरे धीरे धक्का देने लगा.
6, 7 धक्के देने के बाद मेरा लन्ड उसकी चूत में पूरा समा गया.

अब मैं पूरी रफ्तार से अनीता की चुदाई करने लगा.
कमरे में हम दोनों की सिसकारियों और जाँघों के टकराने की आवाज गूँज रही थी.

10 मिनट चुदाई करने के बाद मैं झड़ने वाला था.
नयी या दूसरी औरत के साथ सेक्स करने से जल्दी झड़ जाता हूँ.

तो मैंने उससे पूछा- कहाँ निकालूँ?
उसने कहा- अंदर ही निकाल दो, आज मैं तृप्त होना चाहती हूँ!

मैंने अपना सारा माल उसकी चूत में ही निकाल दिया और निढाल होकर उसके ऊपर ही लेट गया।

5 मिनट बाद उसने कहा- तुम तो जाने वाले थे ना?
तो मैंने कहा- ऐसा ट्रीट मिलने के बाद कौन जाना चाहेगा, तुमने तो मुझे खुश कर दिया।

एक बार फिर हमारी चुदाई का खेल शरू हो गया.
दूसरे राउंड में मैंने उसकी जमकर चुदाई की, इस बार वो भी झड़ गयी और 15 मिनट बाद मैं भी उसकी चूत में झड़ गया.

ऑफिस गर्ल चुदाई से काफी थके होने की वजह से मैं एकदम सो गया.
सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली तो अनीता किचन में थी.

उसके पास जाकर पीछे से गले लगा कर मैं बोला- एक राउंड और हो जाये?
उसने हामी भरी और हम किचन में ही शुरू हो गए.

यहाँ मैंने उसको घोड़ी बना कर चोदा और अपना सारा माल उसकी चूत में निकाल दिया।

फिर मैं फ्रेश होकर अपने घर के लिये निकल गया।

इसके बाद से हमारा जब भी मन करता, हम खूब सेक्स किया करते।

फिर बाद में कैसे उसने पड़ोस की भाभी की चूत दिलाई, वो अगली स्टोरी में बताऊंगा.

आप पाठकों को यह ऑफिस गर्ल चुदाई कहानी कैसी लगी?
मुझे अवश्य बतायें.
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