मेरा गुप्त जीवन-27

(Mera Gupt Jeewan-27 Lucknow Jaane Ki Taiyari)

लखनऊ जाने की तैयारी

मैं बोला- चम्पा, आज हम तीनों चुदाई करते हैं, पहले गंगा को चोदते हैं हम दोनों फिर तुझको चोदते हैं हम दोनों।
क्यों कैसी रही यह?

‘मैं कैसे कर सकती हूँ छोटे मालिक? मेरा 5वाँ महीना चल रहा है। मुझको खतरा है, आप गंगा के साथ करो न, बेचारी दो साल से नहीं

चुदी है इस की चूत।’
गंगा बोली- खतरा तो है, अगर छोटे मालिक तुम को पूरे जोश से चोदेंगे तो! वो तुझको बहुत धीरे और प्यार से चोदेंगे। क्यों छोटे

मालिक?
‘हाँ बिल्कुल!’ मैं बोला।

चम्पा ने भी अपनी धोती और ब्लाउज उतार दिया और वो मेरी एक तरफ लेट गई। दूसरी तरफ गंगा लेटी थी। चम्पा मेरी पुरानी चुदाई

सहेली थी सो उसको अच्छी तरह देखने की बहुत इच्छा थी।
गर्भवती होने के बाद उसमें क्या बदलाव आया है, यह देखना चाहता था मैं! उसके मम्मों को ध्यान से देखा तो वो पहले से काफी मोटे

लगे, निप्पल भी बड़े हो गए थे, हाथ लगाने से ही पता चल रहा था कि वो काफी भारी हो गए हैं और उनका आकार भी पहले से काफी

बड़ा हो गया था।

मैंने कहा- चम्पा, तुम्हारे मम्मे तो बहुत बड़े हो गए हैं, और थोड़े भारी भी हो गए हैं ये दोनों।
चम्पा हँसती हुई बोली- हाँ छोटे मालिक, नए मेहमान के स्वागत में ये दूध से भर रहे हैं धीरे धीरे। नया मेहमान तो आते ही दूध मांगेगा

न।
‘अच्छा ऐसा होता है क्या? तो वह दूध कैसे पियेगा?’
चम्पा और गंगा दोनों हंस पड़ी।
चम्पा बोली- छोटे मालिक, यह चूची वो मुंह में डाल लेगा और इससे उसको दूध मिलेगा।
‘लेकिन मैंने तो इनको बहुत चूसा है तब तो दूध नहीं निकला?’
‘तब मैं गर्भवती नहीं थी न इस लिए कुछ नहीं निकला ना!’

गंगा मेरे खड़े लंड के साथ अभी भी खेल रही थी। मैंने एक हाथ उस की चूत में डाला तो देखा कि वो पानी से भरी हुई थी और कुछ

कतरे पानी के उसकी चूत से निकला कर बिस्तर की चादर पर गिर रहे थे, उसकी भगनासा को हाथ लगाया तो वो भी एकदम सख्त हो

रही थी।
एक गहरा चुम्बन उसके होटों पर करने के बाद मैं उसके ऊपर चढ़ गया, उसकी पतली टांगों को फैला कर उनके बीच लंड का निशाना

ठीक लाल दिख रही चूत का बनाया और सिर्फ लंड का सर अंदर डाला।
चूत एकदम टाइट लगी मुझे, मैं लंड के सर को धीरे धीरे आगे करने लगा। गंगा की आँखें बंद थी और उसके होंट फड़फड़ा रहे थे जैसे

कि बहुत प्यासे को पानी मिला हो!

आधा लण्ड जब अंदर चला गया तब लंड को ज़ोर का धक्का मारा तो वह पूरा जड़ समेत अंदर समा गया।
‘उफ़्फ़’ इतनी टाइट चूत मेरे लंड ने पहले कभी नहीं देखी थी। सो वो अंदर जाकर आराम करने लगा। फिर मैंने धीरे धीरे लंड के धक्के

मारने शुरू कर दिए।
उधर चम्पा भी गंगा की चूत में ऊँगली से उस की भगनासा को रगड़ रही थी।

गंगा के मुंह से अचानक ही ज़ोर से ‘आआअहा… ओह्ह्ह्ह…’ की आवाज़ निकली और वो पूरी तरह से झड़ गई और उसने पूरे ज़ोर से मुझ

को अपनी बाँहों और जांघों में जकड़ लिया।
उसका शरीर रुक रुक कर कम्पकंपा रहा था।
जब उसने आँखें खोली तो मेरा सर नीचे करके मेरे होटों पर एक जलता हुआ चुम्बन दे दिया और उसने अपनी टांगों को फिर चौड़ा कर

दिया और अब चूतड़ उठा कर मेरे लंड को अपने अंदर आने का निमंत्रण देने लगी।

अब मैंने अपनी आदत के अनुसार उसकी पहले धीरे और बाद में स्पीड से चुदाई शुरू कर दी। कुछ धक्के धीरे और फिर फुल स्पीड के

धक्के जैसा कि मुझको कम्मो ने सिखाया था।
जब वो फिर ‘आहा ओह्ह्ह’ करने लगी तो मैंने फुल स्पीड धक्के मार कर उसे छूटा दिया और मैं गंगा से हट कर अब चम्पा की तरफ

आ गया।

चम्पा हमारी चुदाई से काफी गर्म हो चुकी थी, मैंने उसके उन्नत मम्मो को एक बाद एक चूसना शुरू कर दिया, एक उंगली उसकी चूत

में उसकी भगनासा को रगड़ रही और दूसरी मैंने उसकी गांड में डाल दी।

जब मैं उसके ऊपर आने लगा तो उसने मुझको रोक दिया और कहा- बगल से कर लो, ऊपर से ठीक नहीं बच्चे के लिए।
मैंने पीछे से उसकी चूत में ज्यादा नहीं, 2-3 इंच तक लंड डाल दिया और बहुत ही धीरे से धक्के मारने लगा।
मेरी उंगली जो उसकी भगनासा पर थी, उसको चम्पा अपने जांघों में दबाने लगी और कोई 5 मिनट की चुदाई के बाद उसका हल्का सा

झड़ गया।
मैंने उससे पूछा- क्या तेरा पति भी ऐसे ही तुझको चोदता है?
‘बिल्कुल नहीं! उसको तो मैं अपने पास भी नहीं आने देती छोटे मालिक! अक्सर वो शराब पिए होता है, कहीं गलती से ज़ोर का धक्का

लग गया तो नुकसान हो जाएगा बच्चे को।’
‘अच्छा करती हो!’

‘और तुम कहो गंगा, मेरे साथ चलोगी लखनऊ?’
‘ज़रूर चलूंगी छोटे मालिक!’
मैंने चम्पा से कहा- कल ले आना गंगा को और मम्मी से मिलवा देना। और अगर उन्होंने हाँ कर दी तो कल से काम शुरू कर देना

गंगा तुम… ठीक है?
‘ठंडा पीना है क्या?’
दोनों बोलीं- नहीं छोटे मालिक, हम चलती हैं।

मैंने उठ कर पहले चम्पा को एक ज़ोरदार प्यार की जफ़्फ़ी डाली और उसके होटों को भी चूमा और फिर गंगा को भी ऐसा ही किया।दोनों

ख़ुशी ख़ुशी चली गई।

थोड़ी देर बाद मैं भी वहाँ से घर आ गया, वहाँ मम्मी मेरा इंतज़ार कर रही थी और हम दोनों ने मिल कर मेरा सूटकेस तैयार कर दिया।
यह फैसला हुआ था कि मैं अपनी लखनऊ वाली कोठी, जो कभी कभी इस्तेमाल होती थी, में जाकर रहूँगा। वहाँ एक चौकीदार अपने

परिवार के साथ नौकरों की कोठरी में रहता था, उसको फ़ोन पर सब बता दिया था और उसने सारी कोठी की सफाई वगैरा करवा दी थी।
मम्मी पापा दोनों मुझको छोड़ने के लिए जाने वाले थे।
कहानी जारी रहेगी।
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