पति ने मुझे पराये लंड की शौकीन बना दिया- 5

(Craving For Sex)

आई ऍम क्रेविंग फॉर सेक्स … अस्पताल के डॉक्टर को पटाने के लिए मैं ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही थी पर डॉक्टर बहुत धीमी गति से मेरी गिरफ्त में आ रहे थे.

कहानी का पिछला भाग: डॉक्टर को रात को कमरे में बुलाया

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अब आगे आई ऍम क्रेविंग फॉर सेक्स:

शायद उस गोली का ही असर था कि मेरा मन बहुत ज्यादा चंचल हो रहा था।
मेरे पूरे जहन में ना जाने कैसे कैसे मीठे मीठे भाव उफान मार रहे थे।
मैं अतुल से मिलने के लिए पागल सी हो रही थी।
मुझे उस समय डॉक्टर अतुल पर बेतहाशा प्यार उमड़ रहा था।

उनकी टांगों के बीच उनका लण्ड कैसा होगा … उसकी कल्पना मैं मन ही मन करने लगी थी।
मेरी चूत सिर्फ गीली ही नहीं हो रही थी, उसमें से प्रेम रस की जैसे धार बह रही थी।

मेरा मन कर रहा था कि जब डॉक्टर अतुल कमरे में आएंगे, तब मैं उनको बुला कर पकड़ कर खींच कर मेरे साथ पलंग पर लिटा दूंगी और उनके और मेरे कपड़े निकाल कर पहले तो उनका लण्ड खूब चूसूंगी और फिर उनको मुझ पर चढ़ा दूंगी और अपनी टांगें उनके कन्धों पर रख कर उनसे पूरी रात चुदवाऊंगी।

पर मैं जानती थी कि चाहते हुए भी डॉक्टर अतुल अस्पताल के कमरे में मेरा बिल्कुल साथ नहीं देंगे।
मैं आखिर में बड़ी मुश्किल से अपने मन को मनाते हुए यह सोच कर शांत हो गयी कि आज नहीं तो कल अस्पताल के बाहर और कहीं तो उनको मेरा साथ देना पडेगा ना? तब वे कहाँ जाएंगे?

रात के करीब दो बजे दरवाजे पर दस्तक सुन कर मैं फ़ौरन उठ बैठी।
कमरे में मैंने अन्धेरा कर रखा था, फिर भी बाहर खिड़की से कुछ प्रकाश आ रहा था।

मैंने दबी आवाज में कहा- अंदर आ जाइये।

जैसे ही डॉक्टर अतुल अंदर दाखिल हुए तो मैंने कहा- काफी लाइट है, बत्ती मत जलाइए। मैं जाग रही हूँ।

डॉक्टर अतुल मेरे पलंग के करीब आते ही मैंने उनका हाथ पकड़ कर पलंग पर बिठा दिया।

मैंने कहा- डॉक्टर साहब, आपके जाने के बाद मेरे दिल की धड़कन और भी तेज हो गयी है, देखिये।
यह कह कर मैंने डॉक्टर का हाथ मेरी छाती पर रख दिया।

इस बार मैंने ना तो ब्लाउज पहना था और ना ब्रा … ना ही कोई चुन्नी थी।
बल्कि मेरी नाइटी के भी ऊपर के बटन खुले हुए थे।

डॉक्टर अतुल का हाथ अनायास ही मेरे चिकने फिसलन से भरे हुए सख्त स्तनों को छू गया।
मैं एकदम सिहर उठी।

तब मैंने महसूस किया कि डॉक्टर अतुल भी मेरे स्तनों के नर्म स्पर्श से बौखला कर चौंक उठे।

मैंने उनका हाथ मेरे स्तनों पर दबाये रखा।
उन्होंने भी हाथ हटाने की कोशिश नहीं की बल्कि मैंने महसूस किया कि शायद ना चाहते हुए भी वे अपनी उँगलियों से मेरे स्तनों को दबा कर उनकी सख्ती और नर्मी दोनों को अनुभव करने लगे थे।

डॉक्टर कुछ देर तक अँधेरे में ऐसे ही बुत की तरह बैठे हुए मेरे स्तनों को अपनी हथेली में महसूस करते रहे।
उनकी उंगलियां मेरी निप्पलों से खेलतीं और उनको सहलाती रहीं।
ऐसा लग रहा था जैसे वे मेरे दिल की धड़कन गिन रहे हों।

मैं उनको उलझन और असमंजस में फंसे हुए देख कर खिसक कर थोड़ा सा उठ कर उनसे चिपक कर लगभग उनकी गोद में ही जैसे बैठ गयी।

मैंने उनकी आँखों में आँखें डालकर उनके गले में अपनी बांहें डालकर कहा- पता नहीं मेरे पूरे बदन में मुझे क्या हो रहा है। अब मैं आपके गले पड़ गयी हूँ। जो भी हो, मैं अब आपको नहीं छोडने वाली। आप हमारे बन चुके हो। अब मुझसे कोई औपचारिकता रखी तो खबरदार!

डॉक्टर अतुल अपने आपको सम्भालते हुए बोले- देखो तुम्हें कोई बिमारी नहीं है। तुम बिल्कुल ठीक हो। मैं जानता हूँ तुम राज की बिमारी के कारण परेशान हो। मेरे लिए तुम क्या सोच रही हो मैं समझ गया हूँ। मैं क़बूल करता हूँ कि मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो। हमें एक दूसरे से कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं है। बस अब तुम चिंता मत करो। पर याद रखो कि यह अस्पताल है, मेरा घर नहीं। मैं यहां एक ख़ास पोज़िशन में हूँ। अब तुम आराम करो। मैं जा रहा हूँ।

यह कह कर वे खड़े हुए और एक बार मेरा हाथ थाम कर उसे दबाते हुए निकल गए।
डॉक्टर अतुल ने यह सब कह कर साफ़ साफ़ इकरार कर दिया कि वे भी मेरी तरफ काफी आकर्षित थे।

मैं हर रोज सुबह लगभग आठ बजे के करीब अस्पताल की कैंटीन से चाय मंगवा कर घर से लाया हुआ हल्का फुल्का नाश्ता कर अस्पताल के कमरे से निकल जाती और घर जाकर नहा धोकर अपने लिए दोपहर का खाना बना कर वापस करीब ग्यारह बजे तक आ जाती थी।

दिन भर राज के लिए दवाई या जो भी कुछ जरूरत हो, वह मैं देखती रहती थी।
राज को खाना अस्पताल से ही लेना पड़ता था।
शाम को राज से करीब 5 बजे मिल कर मैं फिर घर चली जाती थी और खाना खा कर सबसे मिल कर वापस आठ बजे तक आ जाती थी।

अगले दिन सुबह कमरे में चाय और नाश्ता के आर्डर लेने के लिए कैंटीन वाला लड़का आया।
मैंने उससे चाय ली।

उस लड़के के हाथ में पॉलीथिन में लिपटा हुआ कुछ सामान देख कर जब मैंने उससे पूछा तो उसने कहा कि वह डॉक्टर अतुल के लिए कॉफी नाश्ता ले कर जा रहा था।

उस समय सुबह के आठ बजे होंगे।
रात की शिफ्ट कभी की ख़त्म हो चुकी थी।

डॉक्टर अतुल को सुबह 6 बजे ही काम खत्म कर अपने घर जाना चाहिए था।

मैंने उसे पूछा तो उसने बताया कि अक्सर डॉक्टर अतुल कैंटीन का नाश्ता करके ही घर जाते थे।
दोपहर में भी वे कैंटीन का खाना कभी खाते थे तो कभी खाते ही नहीं थे।

लड़के ने बताया कि डॉक्टर अतुल शादीशुदा तो थे पर सब कहते हैं कि उनकी बीवी से बनती नहीं थी। वे घर में अकेले ही रहते थे।

यही बात मेरे पति ने भी कही थी।
मेरे मन में एक उथलपुथल सी चल पड़ी कि आखिर क्यों डॉक्टर अतुल शादीशुदा होते हुए भी अकेले रह रहे थे?

मैंने वह लड़के से डॉक्टर अतुल के नाश्ते का पैकेट और कॉफी ले ली और उसे कहा कि वह जाकर डॉक्टर अतुल से कहे कि उनके नाश्ते का पैकेट मेरे पास है और वे यहां मेरे कमरे में आकर नाश्ता करें।

जब डॉक्टर अतुल हमारे कमरे में आये तब मैंने उनके नाश्ते की प्लेट में सैंडविच और कॉफी उनके सामने रख दी।

जैसे ही वे कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे … मैंने उनका हाथ पकड़ कर कुछ गुस्सा दिखाते हुए उनसे पूछा- मुझे यह कैंटीन वाला लड़का बता रहा था कि आप हर रोज यही नाश्ता करते हो और यहीं का खाना भी खाते हो। क्यों, घर में कोई खाना बनाने वाला या खाना बनाने वाली नहीं है क्या? आप ऐसा फटीचर खाना क्यों खाते हो? ऐसा ही बासी कचरा खाना रोज खाओगे तो बीमार नहीं पड़ोगे क्या?

डॉक्टर मेरे पति का ख्याल रखते थे तो मेरा फर्ज बनता था कि मैं डॉक्टर अतुल का ख्याल रखूं।
मैंने सबसे पहले उनके खाने का ख्याल रखना चाहा। मैंने उनको कैंटीन का खाना खाने के लिए अच्छे से डांटा।

मेरा गुस्सैल चेहरा देख कर डॉक्टर अतुल कुछ देर के लिए तो झेंप गए।
उन्होंने उम्मीद नहीं की होगी कि मैं उनको इस तरह डांट भी दूंगी।

फिर थोड़ा सा सम्हल कर हल्का सा मुस्कुरा कर बोले- नीना, तुम तो मेरी माँ की तरह मुझे डांट रही हो। अरे भाई, मैं राज की तरह लकी नहीं हूँ कि तुम्हारे जैसी बीवी हो जो मेरा इतना ख्याल रखे। जो मेरे लिए खाना बनाये और खिलाये। मेरी बीवी तो मुझसे लड़ाई झगड़ा करके उसके रईस पिता के पास करोड़ों की मालकिन बन कर रह रही है। उसे मेरी या मेरे खाने की चिंता कहाँ! मेरे पास समय नहीं कि मैं अपना खाना खुद बना कर खाऊँ। तो इसी से काम चलाना पड़ता है।

मैं डॉक्टर का जवाब सुनकर कुछ देर के लिए चुप हो गयी।
फिर खड़ी होकर अतुल के कान पकड़ कर बोली- डॉक्टर साहब, सुन लीजिये, ठीक है, मैं समझ सकती हूँ कि आपकी कुछ घरेलू समस्या है। पर मुझे आपको इस तरह अपनी सेहत का ख्याल ना रखने के लिए डांटने का हक़ है। कल से आप इस कैंटीन का खाना नहीं खाएंगे। जब तक हम यहां हैं, मैं मेरे और आपके लिए घर से सुबह का नाश्ता और रात का खाना ले आऊंगी। जब तक आप नाइट शिफ्ट में है तब बस दिक्कत दोपहर के खाने के लिए होगी।
दोपहर के खाने के लिए देखूंगी कि क्या हो सकता है। इसमें मैं कोई ना नुकुर नहीं सुनना चाहती। बाद में आप अपने घर किसी खाना बनाने वाली को तो रख सकते हैं ना? वरना उसके बाद मुझे ही आपके घर आकर आपके खाने के लिए कुछ ना कुछ इंतजाम करना पड़ेगा। मैं खुद तो रोज खाना बनाने के लिए नहीं आ सकती. पर किसी को रखवा तो सकती हूँ ना? ओके?

डॉक्टर अतुल क्या बोलते … वे चुपचाप अपनी मुंडी हिलाते हुए बोले- नीना, यह सब तकलीफ …

मैंने डॉक्टर अतुल के करीब जा कर उनके होंठों पर उंगली रख कर उनसे तीखे आवाज में कहा- खबरदार, आगे बोले तो! हमने तय किया था ना कि कोई औपचारिकता नहीं? फिर अब अगर ज्यादा डांट नहीं खानी है तो चुपचाप मान जाओ।

“पति की दवाई डॉक्टर से आँख लड़ाई” में आपने पढ़ा की कैसे मेरे पति के अस्पताल में दाखिला कर उनकी ट्रीटमेंट कराते हुए मैं एक मस्त डॉक्टर के जाल में फँसने लगी।
डॉक्टर के जाल में मैं फंसने लगी या डॉक्टर मेरी जाल में फंसने लगा यह आप बताएँगे।

डॉक्टर ने मुस्कुरा कर कहा- नीना, अब तो तुम मुझे ऐसे डांटने लगी हो जैसे मेरी बीवी हो। सुनो, तुम्हें मुझे डांट के अलावा जो खिलाना हो, वह खिलाओ मैं खा लूंगा।

मैंने उस समय डॉक्टर अतुल की भीगी हुई आँखों में दुःख, करुणा और मेरे लिए सच्चे प्यार की झलक देखी।

मैं यह देख कर अपने अंदर से मचल उठी।
तो मैं खड़े हो कर कुर्सी पर बैठे डॉक्टर के बिल्कुल करीब गयी और उनके बाजू में उनसे सट कर खड़ी हो गयी।

मैंने उनका सिर अपनी छाती से सटाते हुए प्यार से हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा- जब आपकी बीवी अपना फर्ज नहीं निभा पा रही है तो क्या मेरा आप की बहू या आधी बीवी होने के नाते आपकी बीवी की कमी पूरा करने का फर्ज नहीं है? आप हाँ कहो या ना, मैं यहां नहीं तो कहीं और, मैं मेरा वह फर्ज पूरा कर के रहूंगी। मेरे पति भी यही चाहते हैं। भगवान का उपकार मानो कि मैं आपकी पूरी बीवी नहीं हूँ। अगर मैं आपकी पूरी बीवी होती तो एक दिन भी ऐसा खाना ना खाने देती, और इस तरह अस्पताल में 24 घंटे ड्यूटी भी ना करने देती।

उस समय पता नहीं मुझे क्या सूझी … मैंने शरारती लहजे में कहा- डॉक्टर साहब, अगर मैं आपकी पूरी बीवी होती तो डांटती जरूर पर प्यार भी तो करती। मैं रात भर प्यार करने के बजाये यहां इस तरह आप को नाइट ड्यूटी थोड़े ही करने देती? अब जब तक हम हैं तब तक मैं आपके लिए खाना लाती रहूंगी। इस बीच मैं आपके लिए खाना बनाने के लिए कोई रसोई बनाने वाली मेड को ढूंढ देती हूँ। पर दिक्कत यह है कि आपका भी तो कोई ठिकाना नहीं है। कब घर जाते हो, कब घर से आते हो, किसी को कुछ पता ही नहीं। तो आप नहीं रहोगे तो खाना बनाने वाली घर कैसे खोलेगी? एक एक्स्ट्रा चाभी उसे भी तो देनी पड़ेगी।

डॉक्टर अतुल ने कहा- कई बार मैं घर से बाहर निकलते हुए चाभी ले जाना भूल जाता हूँ और दरवाजा बंद करते ही लॉक हो जाता है। इसलिए मैं एक चाभी हमेशा दरवाजे के बाहर एक गमले के अंदर छिपा कर रख छोड़ता हूँ। वहाँ से तुम जब भी आओ तो ले सकती हो।

फिर उन्होंने मुझे एक हल्का सा खिसकाकर अपने से अलग करने की कोशिश की।
पर मैं बिना हटे वहीं डट कर खड़ी रही।

तब उन्होंने कुछ गंभीर होते हुए कहा- एक औरत ने मेरा घर उजाड़ दिया है। मैं तुम्हें राज से अलग कर के राज का घर उजाड़ कर अपना घर बसाना नहीं चाहता। एक उजड़ा हुआ घर ही काफी है।

हंसी मजाक की जगह माहौल कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगा था।
तब मैंने अतुल का हाथ अपने हाथों में पकड़ कर उनकी आँखों में झाँक कर बड़ी ही गंभीरता से कहा- डॉक्टर साहब, आपने मुझे मेरे पति की जिंदगी बचाने का वचन दिया है तो मैं भी आपको वचन देती हूँ कि मैं आपका घर भी उजड़ने नहीं दूंगी। लेकिन उसके लिए आप को भी बिना मेरी बात को टाले या नकारे मेरा पूरा साथ देना पड़ेगा।

मेरी इस तरह बिंदास बात सुनकर डॉक्टर हक्के बक्के से मुझे देखते ही रहे।
मैंने मुस्कुरा कर अपनी बांहें फैलायीं और अतुल को मेरी बांहों में भर लिया।

डॉक्टर अतुल मेरी साँसों की धड़कन और मेरी छाती के ऊपर नीचे होने का अहसास अपने सर, कपाल और गालों पर कर रहे थे।
वे मेरे भरे हुए ऊपर से काफी खुले हुए स्तनों को भी उत्तेजना के मारे ऊपर नीचे होते हुए अजीब सी नज़रों से देख रहे थे।

कुछ लज्जा के कारण और कुछ डॉक्टर अतुल की बेचैनी को ध्यान में रखते हुए मैं पीछे हट गयी।

डॉक्टर ने फिर से वही पुरानी खिसियानी शक्ल बनाते हुए कहा- एक तरफ तो तुम मुझे अपना बच्चा, या पति जैसा कहती हो और दूसरी तरफ मुझे आप कह कर बुलाती हो। नीना, तुम मुझे आप कहोगी तो फिर मैं तुम्हें भी मिसेज राज कह कर बुलाना शुरू कर दूंगा।

मैंने अपने कान पकड़ फर्श पर घुटनों के बल बैठते हुए कहा- मुझे माफ़ कर दो। मैंने आपको अपने पति जैसा या उनसे भी बड़ा माना है। मैं आपको तुम या तू नहीं कह सकती। यह हमारी संस्कृति नहीं है। अब प्लीज दुबारा यह मत कहना। मैं आपसे हाथ जोड़ कर विनती करती हूँ। ओके?

उस समय मेरा मुंह डॉक्टर अतुल के पतलून में छिपे हुए उनके लण्ड के बिल्कुल सामने था।
मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं ज़िप खोल कर उसे बाहर निकाल कर अपने दोनों हाथों में पकड़ कर चूसूं।
पर मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोका।

डॉक्टर अतुल मेरी बात सुनकर स्तब्ध हो गए।
उन्होंने मेरे हाथों को पकड़ कर मुझे खड़ा किया और मुझे खींच कर अपनी बांहों में जकड़ कर अपने सीने से लगाते हुए कहा- नीना, ऐसा मत करो।
फिर आनन फानन में बड़बड़ाते हुए अनजाने में बोल पड़े- … र करने वाले माफ़ी नहीं मांगते। माफ़ी शब्द के पहले उन्होंने बड़बड़ाते हुए क्या बोला वह मेरी समझ में नहीं आया।

मैं निःसंकोच डॉक्टर अतुल के सीने से कस कर खड़ी हो गयी और मेरा सिर डॉक्टर अतुल के सीने से रगड़ते हुए मैंने हँसते हुए कहा- डॉक्टर, आप साफ़ साफ़ क्यों नहीं बोलते कि प्यार करने वाले माफ़ी नहीं मांगते। आप मुझे प्यार नहीं करते क्या? इतना हिचकिचाते क्यों हो यार?

मेरी बिंदास हंसी और बर्ताव देख कर डॉक्टर अतुल भी हंस पड़े।
फिर मेरी पीठ पर प्यार से एक हल्की सी चपेट मारते हुए बोले- नीना, तुम बिंदास हो; जो मन में आये बोल देती हो। भगवान तुम्हे हमेशा इसी तरह हंसती हुई रखे!

तब मैंने अतुल के सामने देखकर बड़े ही सरल अंदाज में कहा- आपके आशीर्वाद और सही इलाज से अगर राज पहले की तरह ही ठीक हो जाएंगे तो मैं हमेशा ऐसे ही हंसती इठलाती रहूंगी और आपको भी मेरी ही तरह हँसता इठलाता कर दूंगी. यह मेरा वादा है। अब मैं घर जाऊंगी और अपना और आपका खाना ले कर दोपहर को आऊंगी और दोपहर का खाना आपके साथ ही खाऊंगी।

डॉक्टर ने कहा- मैं अब तो घर जा रहा हूँ। कुछ देर सो जाऊँगा। तुम घर से खाना लेकर यहीं वापस आ जाना। मैं सो कर और नहा धो कर दोपहर के करीब एक बजे तक वापस अस्पताल आ जाऊँगा। हम यहीं खायेगे।

मैंने कहा- अगर आप लेट हो गए तो मैं आपके घर आ जाऊंगी। फिर हम वहीं लंच साथ में ही करेंगे।

अतुल ने तब मुझे देख कर मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है, चाभी कहाँ रखी होगी वह तो तुम जानती ही हो। तुम याद रख कर इस धूप में घर से निकलने से पहले वह गोली जरूर पानी के साथ ले लेना।

डॉक्टर साहब को नाश्ता करा कर मैं अस्पताल से घर आ गयी।

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