बेशर्म कौन

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जैन साहब उस दिन नाई की दुकान में अपनी बारी की इन्तजार में बैठे किसी फिल्मी पत्रिका में एक हास्य अभिनेता के सपनों के घर के बारे में पढ़कर चौंक गये !

चौंकना स्वाभाविक था क्योंकि वह अपने सपनों का महल जूहू बीच पर, किसी सुरम्य वादी या स्वर्ग में नहीं बसाना चाहता था, वह तो बस इतना चाहता था कि उसका घर लड़कियों के किसी कालेज के होस्टल के सामने हो और उसी में वह अपनी पूरी जिन्दगी हंसी खुशी गुजार दे !

तब उनके मन में आया कि उनका स्वयं का घर भी तो एक ऐसे ही रमणीय स्थल पर है, दिन भर सामने से एक पर एक छप्पन छुरी लोगों के दिलों में कसक पैदा करती गुजरती रहती है। फिर दूसरी मंजिल के सबसे पश्चिम वाले कमरे की खिड़की तो होस्टल के सामूहिक शयन कक्ष के ठीक सामने खुलती है। अगर शयन कक्ष की खिड़कियाँ भी खुली हों तब तो क्या क्या देखने को नहीं मिलता है। और हाय ! गर्मियों में तो जैन साहब कई कई रातें जागकर खिड़की में खड़े रह कर गुजार दिया करते थे, लड़कियाँ ठंडी हवा के लिए खिड़की खुली छोड़ कर अल्प वस्त्रों में सोती थी और तेज हवा से अगर परदा अपनी जगह से हिलता तो रात को उनके शरारती कपड़े कहाँ कहाँ से फिसले हुए दिख जाते कि तौबा तौबा !

वैसे जैन साहब तो समय के साथ साथ बूढ़े होते चले गये, पर लड़कियाँ कभी बूढी नही हुई। हर साल नई-नई और खूबसूरत लड़कियाँ आ जाती ! उनके जमाने में तो खैर इतनी लाजवाब लड़कियाँ होती भी नहीं थी !

खैर… अब तो व्यापार के सिलसिले में अक्सर बाहर रहना होता है तो भला ऐसे मौके कहाँ?

लेकिन अचानक उन्हें अपने दोनों बेटों की याद आई, वे? वे तो…?

वे उसी शाम उस कमरे में गये, शयन कक्ष की खिड़कियाँ पूर्ववत खुली थी, उन्होंने गौर से देखा, कोई लड़की अपने कपड़े बदल रही थी, और कुछ तो केवल अधोवस्त्रों में बैठी चुहलबाज़ी कर रही थी।

जैन साहब ने शर्म से आँखें बन्द कर ली !

उसी क्षण उन्होने यह भी निश्चय कर लिया कि उन्हें छात्रावास के वार्डन से मिलना चाहिए।

दूसरी ही सुबह पहुँच भी गये और कहने लगे- समझ में नहीं आता, आपके यहाँ की लड़कियाँ कितनी बेशरम हैं? अन्धे तक को भी दिखाई पड़ता है कि पहाड़ जैसा मकान सामने खड़ा है, उसकी खिड़कियाँ भी सामने पड़ती हैं, फिर भी लड़कियाँ खिड़कियाँ बन्द किए बिना यों कपड़े बदलती रहती है कि…… बेशरम कहीं की !

युवा वार्डन पल भर को चुप रही, फिर बोली- अरे साहब, लड़कियाँ तो लड़कियाँ हैं ! कच्ची उम्र में हैं, नादान हैं, भोली हैं, यों तो खिड़कियाँ बन्द कर ही लेती होंगी, पर उम्र ही ऐसी है कि दुपट्टा भी सम्भाले नहीं सम्भलता है, फिर खिड़की तो खिड़की है ! और फिर अगर आपको इनकी शर्म का इतना ख्याल है तो आप अपनी खिड़की बन्द करके भी तो उन्हें बेशरम होने से बचा सकते हैं !

जैन साहब के पास अब कोई जवाब नहीं था।

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