काम पिशाच-1

(Mausi Ki Chudai Ki Kahani: Kaam Pishaach- Part 1 )

दोस्तो, अक्सर आपने कहानियाँ पढ़ीं होंगी, लोगों के बारे में कि उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों और लड़कियों से सेक्स किया है.
मगर कुछ दिन हुये मुझे एक ऐसा व्यक्ति मिला, जिसकी कामेच्छा का कोई अंत ही नहीं है, और सिर्फ इतना ही नहीं, उस आदमी की किस्मत भी ऐसी लिखी है भगवान ने कि औरतें और लड़कियाँ तो जैसे खुद उससे आकर कहती हों कि ‘भाई मेरी भी मार लो.’

मैंने उससे बड़ी डीटेल में बात की, अब बात जब पेग के साथ हो, तो आदमी बहुत खुल कर सामने आता है, और जब उसने मुझे अपनी कहानी सुनानी शुरू की, तो मैं तो हैरान पर हैरान होता गया. तो लीजिये आप भी पढ़िये.
दोस्तो, मेरा नाम संदीप कुमार (परिवर्तित नाम) है. ज़्यादा घूम फिर कर नहीं मैं सीधा मुद्दे पर आता हूँ. जब मेरा जन्म हुआ तो मैं एक साधारण बालक था, अपनी उम्र के हिसाब से मैं सब कुछ कर रहा था, कुछ भी ऐसा नहीं था जो और बच्चों से अलग हो, सिवाए एक चीज़ के और वो चीज़ थी, मेरी लुल्ली, जो बचपन से और बच्चों से बड़ी थी. मेरे जितने भी दोस्त थे, जब कभी भी हम खेल खेल में एक दूसरे की निकर उतार कर देखते तो मेरी लुल्ली उन सब में दुगनी बड़ी थी. अगर उनकी चीची उंगली जितनी बड़ी थी, तो मेरी अंगूठे जितनी बड़ी थी. मैं शायद उस वक़्त सातवीं क्लास में था.

मेरी एक मौसी थी जिसकी दोनों टाँगों में पोलियो हो गया था और वो हमारे साथ ही रहती थी, क्योंकि पोलियो की वजह से उसकी शादी नहीं हो पाई थी. बेशक माँ की वो छोटी बहन थी, मगर माँ हमेशा उसे खरी खोटी ही सुनाती थी. वो मजबूर थी, इस लिए वो सारा दिन घर का काम भी करती और माँ ताने भी सुनती.
मुझे नहीं पता था कि माँ उस बेचारी लड़की से इतनी नफरत क्यों करती है.

एक रात मैं सो रहा था, तो मुझे लगा जैसे मेरे बदन पर कोई हाथ फेर रहा है. मैं जाग गया पर चुपचाप लेटा रहा. मैंने ध्यान लगा कर देखा, तो ये तो मौसी थी, जो मेरे लुल्ले को अपने मुँह में लेकर चूस रही थी, और मेरी छाती के दोनों निप्पल को अपनी उंगली और अंगूठे से मसल रही थी.
मुझे इस काम में बड़ा मज़ा आया, मैं चुपचाप लेटा इस काम के मज़े लेता रहा.

मुझे नहीं पता था कि लुल्ला चुसवाने से इतना मज़ा आता है और मेरा लुल्ला भी अकड़ कर पूरा लंड बन चुका था. मेरा दिल तो कर रहा था कि उठ कर मैं भी मौसी के चूचे दबा दूँ, मगर दूसरे बिस्तर पे माँ सो रही थी, और पिताजी भी, तो मैं हिम्मत नहीं कर पाया.
मगर मौसी मेरे लुल्ले को खाये जा रही थी.

जब मुझसे रहा न गया, तो मैंने अपने पाँव से मौसी के चूचे हिला दिये. पहले तो मौसी एकदम से चौंकी, और उसने अपने मुँह से मेरा लुल्ला निकाल दिया. मगर जब मैंने दोबारा उसके चूचों पर अपना पाँव लगाया तो मौसी ने मेरा लुल्ला पकड़ कर फिर से अपने मुँह में ले लिया और लगी चूसने.
उसने अपनी कमीज़ के बटन खोले और मेरा पूरा पाँव अपनी कमीज़ के अंदर डाल लिया. दो मस्त गोल और सॉलिड चूचे, जिन्हें मैं अपने पाँव से दबाता रहा, मगर मेरी इच्छा हो रही थी कि मैं मौसी के चूचे अपने हाथ से दबाऊँ और मुँह में लेकर चूसूँ.

इसलिए मैंने मौसी के सर पे हाथ मारा, उसने मेरी तरफ देखा मैंने पहले उसके चूचे पर अपना पाँव लगाया और फिर उसके मुँह में अपनी उंगली डाल कर उसे इशारा दिया कि मैं उसके चूचे चूसना चाहता हूँ.
वो धीरे धीरे घिसट घिसट कर ऊपर को आई, और मेरे बराबर लेट गई. पहली बार मेरी मौसी मेरे साथ इस तरह चिपक कर लेटी थी. मैंने उसकी कमीज़ के गले से उसका एक बोबा पकड़ कर बाहर निकाला. नर्म और गोल, जिस पर बड़ा सारा निप्पल खड़ा था, मैंने उसका निपल छुआ तो उसने अपने हाथ से अपना बोबा पकड़ कर मेरे मुँह से लगा दिया, मैं किसी छोटे बच्चे की तरह उसका बोबा
पीने लगा.

मौसी ने मेरी निकर चड्डी सब उतार दी और फिर से मेरा लुल्ला पकड़ लिया. फिर मौसी ने अपना कमीज़ ऊपर उठा कर अपने दोनों बोबे बाहर निकाल दिये और मेरे हाथ पकड़ कर अपने बोबों रखे, मैंने उसके दोनों बोबे हल्के से दबाये तो मौसी ने अपने हाथ मेरे हाथों पर रख कर ज़ोर दबाये और मेरे कान में फुसफुसाई- ज़ोर से दबाओ इन्हें, मसल डालो.

मैंने भी अपनी पूरी ताकत से उसके बोबे दबाये, मुझे सच में इस खेल में बड़ा मज़ा आ रहा था. मौसी मेरे लुल्ले से खेल रही थी, और मैं उसके बोबों से. फिर मौसी ने अपनी सलवार खोली, और घुटनों तक उतार दी और अपनी मजबूत बाजुओं का सहारा लेकर मेरे ऊपर आकर लेट गई.
सच में मौसी भारी थी. उसने खुद ही अपनी दोनों टाँगें खोली और मेरे लुल्ले को पकड़ कर अपनी दोनों टाँगों के बीच में रखा. जब वो नीचे को हुई तो मुझे लगा जैसे मेरा लुल्ला किसी सुराख में घुस रहा है, मगर इस के साथ ही मेरे लुल्ले में दर्द भी बहुत हुआ. मैंने मौसी को रोका, थोड़ी देर बाद उसने फिर कोशिश की, मगर फिर मुझे दर्द हुआ, उस रात मौसी ने 3-4 बार कोशिश की, मगर मेरा लुल्ला उसके अंदर न घुस पाया, मुझे हर बाद दर्द ही हुआ.

फिर मौसी ने मेरे हाथ का अंगूठा अपनी दोनों टाँगों के बीच में ले लिया, वहाँ पे कोई गीली सी मगर गर्म जगह थी. पता तो मुझे था कि ये लड़कियों के सुसू करने की जगह है, पर मैं वैसे ही सो गया.

सुबह जब उठा, तो लुल्ले में भी दर्द था. स्कूल से वापिस आया, खाना खाया, और अपने होम वर्क में लग गया. मौसी से दो चार बार मेरी नज़रें तो मिली मगर बात कुछ नहीं हुई.

शाम को जब माँ पिताजी मंदिर चले गए, मैं बैठा अपनी पढ़ाई कर रहा था, तो मौसी अपनी व्हील चेयर पे बैठी, मेरे पास आई. हम दोनों एक दूसरे को देखा. मौसी बोली- आज बहुत पढ़ाई हो रही है.
मैंने कहा- हाँ मौसी, अगले महीने से एक्जाम शुरू हो रहे हैं.
वो बोली- तुम्हें दूध लाकर दूँ हल्दी वाला?
मैंने कहा- नहीं मुझे नहीं पीना.
वो बोली- पी ले, इससे दर्द कम हो जाता है.

मैंने उसकी तरफ देखा तो वो मुस्कुरा रही थी. मैं उसकी आँखों में देखता रहा, फिर मेरा ध्यान उसके बोबों की तरफ गया, तो उसने अपना दुपट्टा हटा कर मुझे अपने बोबे दिखाये. कमीज़ के ऊपर से एक छोटी सी लकीर सी दिख रही थी.
मैंने कहा- रात आप क्या कर रही थी मेरे साथ?
वो मुस्कुरा कर बोली- तुम भी तो बहुत कुछ कर रहे थे, इतनी ज़ोर से दबाये तुमने, पता है, मेरे भी दर्द हो रहा है.
मैंने कहा- क्या सच में ज़ोर से दबा दिये?

उसने मेरे हाथ पकड़ा और अपने सीने से लगा कर बोली- यहाँ बहुत दुखता है.
मैंने भी अपनी लुल्ले की तरफ इशारा कर के कहा- मौसी यहाँ भी दुखता है.
मौसी बोली- ला दिखा तो ज़रा क्या दुखता है.

मैं कुछ कहता इस पहले ही वो आगे को बढ़ी और मेरे लोअर को नीचे को खींचने लगी. इलास्टिक वाली लोअर थी, उतर गई, और फिर उसने चड्डी भी नीचे को कर दी और मेरे लुल्ले को अपने हाथ में पकड़ लिया. मेरा लुल्ला तो पहले से ही तना पड़ा था. उसने हाथ में पकड़ कर मुझे अपनी और खींचा तो मैं उठ कर खड़ा हो गया.

उसने पहले मेरे लुल्ले का मुँह चूमा और फिर उसकी चमड़ी पीछे हटाने लगी. मैं फिर दर्द से बिलबिला उठा. वो बोली- अभी तो तू कच्चा है, तुझे पकाना पड़ेगा. मर्द बनाना पड़ेगा.
मैंने कहा- इसमें बहुत दर्द होता है.
वो बोली- जिस दिन हम दोनों अकेले हुये घर में उस दिन तुझे इस दर्द से मुक्ति दिला दूँगी. बस तक तक सब्र कर!
फिर उसने मुझे छोड़ दिया तो मैंने अपने कपड़े ठीक किए और फिर से पढ़ने बैठ गया क्योंकि माँ पिताजी का मंदिर से वापिस आने का समय हो गया था.

कुछ दिनोब के बाद माँ के चाचाजी का देहांत हो गया. माँ और पिताजी दोनों को जाना पड़ा. मेरे पेपर चल रहे थे, और मौसी चल नहीं सकती थी इसलिए हम दोनों घर पर ही रहे. जाने से पहले माँ मुझे और मौसी को खूब अच्छी तरह से समझा कर, डांट डपट कर गई, ढेर सारी हिदाएतें. यह नहीं करना, वो नहीं करना.

मैं स्कूल चला गया, जब दोपहर को तो मौसी ने बड़े प्यार से मुझे खाना खिलाया. खाना खा कर मैं बेड पे लेट गया क्योंकि अब दो दिन बाद पेपर था तो मैं पेपर की तैयारी अगले दिन भी कर सकता था.

जब मैं लेट गया तो थोड़ी देर बाद मौसी भी आ गई, पहले तो अपनी व्हील चेयर पे बैठी टीवी देखती रही, फिर मेरे पास ही आ कर बेड पे लेट गई. जब मौसी बेड पे लेटी तो उसने अपना दुपट्टा उतार दिया. अब वो बिना दुपट्टे के लेटी थी.
जब मैंने उसकी और देखा तो उसके कमीज़ के गले से उसके बड़े बड़े गोल गोल बोबे बाहर को आ रहे थे. मैं उसके बोबे देखने लगा तो मौसी ने पूछा- पिएगा?
मैंने सोचा ‘ये हर वक़्त गरम ही रहती है’ मैंने कह दिया- हाँ!
तो उसने उठ कर अपनी कमीज़ पूरी ही उतार दी. नीचे सफ़ेद रंग के उसके ब्रा में उसे विशाल बोबे बड़े मुश्किल से फंसे थे.

जब उसने अपनी ब्रा खोली तो मैं देख कर हैरान ही रह गया.
गोरे रंग के मांस के ढेर थे जैसे.

उसके बाद वो अपनी सलवार खोलने लगी और मुझे बोली- जा बाहर वाले दरवाजे को लॉक करके आ!
मैं भाग कर गया और जब दरवाजा बंद करके वापिस आया तो वो बेड पे बिल्कुल नंगी पड़ी थी, मुझसे बोली- किचन में ऊपर की अलमारी में एक सफ़ेद शीशी पड़ी है तेल वाली, वो भी ले आ!
मैं वो तेल वाली शीशी भी लेकर उसके पास गया तो वो बोली- चल अब तू अपने कपड़े भी उतार दे.

उसे नंगी देख कर लुल्ला तो मेरा भी अकड़ गया था, मैंने अपनी कमीज़ खोली, निकर और चड्डी भी उतार दी. जब नंगा हो गया, तो उसने मुझे बेड पे लेटा कर मेरे पेट पर चढ़कर बैठ गई. बेहद भारी थी मौसी!

उसके पिचके से चूतड़ और पतली सूखी बेजान सी टाँगें मेरे ऊपर थी. उसने शीशी से काफी सारा तेल निकाला और मेरे लुल्ले पे लगा कर अपने हाथ से उसकी ऊपर नीचे मालिश करने लगी.
मैं उसकी नंगी भरपूर मांसल पीठ पर हाथ फेरता रहा. मौसी की चूत जो बालों से भरी थी, मेरे पेट पे थी, और मुझे अपने पेट पर गीला गीला सा लग रहा था, जैसे उसकी चूत से कुछ निकल कर मेरे पेट पे लग रहा हो.

वो मेरे लुल्ले की ज़ोर ज़ोर से मालिश कर रही थी. वो तेल लगाती और फिर ज़ोर ज़ोर से मेरे लुल्ले को ऊपर नीचे फेंटती. थोड़ी सी देर में ही उसने मेरे लुल्ले के अंदर जो गुलाबी सी गेंद थी वो बाहर निकाल दी. पहले मुझे हल्का सा दर्द हुआ था, मगर बाद में ठीक लगने लगा. मुझमे जोश बढ़ता जा रहा था, मैं मौसी के बदन को अपने हाथों में भर भर के दबा रहा था.

मौसी थोड़ी से पीछे को हुई, तो मैंने उसके दोनों बोबे पकड़ लिए और खूब ज़ोर से दबाये, जितना मुझे जोश आता, मैं उतनी ज़ोर से दबाता. मौसी के दोनों बोबे मेरे दबाने से लाल सुर्ख हो गए थे.
मैं नीचे लेटा भी उछल रहा था, मौसी ने मेरे लुल्ले को पूरी ताकत से अपने हाथ में पकड़ा हुआ था और ज़ोर ज़ोर से मेरे लुल्ले की चमड़ी नीचे को खींच रही थी.

फिर मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे कोई करंट लगा हो, मैं बिल्कुल हल्का हो कर हवा में उड़ गया हूँ, और इस दौरान मौसी ने इतनी ज़ोर से मेरे लुल्ले की चमड़ी पीछे को खींची कि वो टूट गई, और मेरे लुल्ले से खून बह निकला.
मैं दर्द से तड़प उठा- आह मौसी, ये क्या किया. हाय मार डाला!

मैं रोना चाहता था, पर रो नहीं पाया. मौसी को मैंने धक्का दे कर अपने ऊपर से नीचे उतारा, और बाथरूम में जाकर मैंने अपने लुल्ले को पहले ठंडे पानी से कई बार धोया, और फिर उस पर दवाई लगाई और फिर रुई लगा कर बाहर आया.
मेरा लुल्ला सूज गया था और उसमें बहुत दर्द हो रहा था.

मैंने मौसी से कहा- ये क्या किया मौसी, आपने तो मेरे खून ही निकाल दिया.
वो बोली- बात सुन मेरी पगले, मैंने तुझे मर्द बना दिया है. एक न एक दिन तो तेरी सील टूटनी ही थी, सो आज टूट गई. अब तू किसी भी लड़की को चोद सकता है.

मैं वापिस आ कर बेड पर लेट गया. मौसी अब भी मेरी बगल में नंगी लेटी थी, मुझसे बोली- ऐसा कर इसे हवा लगवा, फिर जल्दी ठीक हो जाएगा.

मैं अपनी निकर उतार कर अपने लुल्ले को हवा लगवाने लगा, मौसी मेरे पास आई और मेरे होंठ चूम कर बोली- घबराना नहीं मेरे लल्ला, मैंने जो किया है, तेरे भले के लिए ही किया है.
उसका होंठ चूमना मुझे अच्छा लगा, मैंने मौसी का चेहरा पकड़ा और एक बार फिर उसके होंटों से अपने होंठ जोड़ दिये.

पहले हमने एक दूसरे को चूमा, फिर मौसी ने मुझे होंठ चूसने सिखाये, फिर जीभ चूसनी भी सिखाई. मगर इस चूसा चुसाई में मेरा लुल्ला फिर से तन गया, जिससे मुझे दर्द होने लगा. तो मौसी बोली- तू कुछ न कर, बस ऐसे ही लेटा रह, मैं खुद ही सब कुछ कर लूँगी.

मौसी ने अपनी उंगली से अपनी चूत को सहलाना शुरू कर दिया, वो कभी मुझसे अपने बोबे चुसवाती, कभी मेरे होंठ चूसती, कभी मेरी छाती को चूमती, चूसती.
कितनी देर वो ऐसे ही करती रही.

फिर शांत हो कर लेट गई.

मैंने पूछा- ये अभी आपने क्या किया?
वो बोली- हस्त मैथुन किया.
फिर उसने मुझे हस्त मैथुन के बारे में सब कुछ बताया, सेक्स क्या होता है, कैसे होता है, बच्चा कैसे होता है, पीरियड्स क्या होते हैं, सब समझाया, और ये भी बताया कि जब मेरे लुल्ले का दर्द बिल्कुल ठीक हो जाएगा, तब हम क्या क्या करेंगे.

मौसी की चुदाई की कहानी जारी रहेगी.
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काम पिशाच-2

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