जिस्मानी रिश्तों की चाह-60

(Jismani Rishton Ki Chah- Part 60)

सम्पादक जूजा

मैंने डिल्डो के धोखे से आपी की चूत में अपना लंड लगा दिया और आपी को पता चल गया। आपी रोने लगी, मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूँ.. मैंने आपी को दोबारा बाँहों में लेना चाहा तो उन्होंने गुस्से से मुझे दूर रहने को कहा।

वे रोते-रोते ही खड़ी हो कर अपने कपड़े उठाने लगीं।

फरहान इन सारे हालात पर बिल्कुल खामोश और गुमसुम सा बैठा था, उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि आपी को या मुझे कुछ कहे या आगे बढ़े।

आपी को इस तरह बेक़ाबू देख कर मैंने भी दोबारा उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं की और उनसे दूर खड़ा खामोशी से उन्हें क़मीज़ सलवार पहनते देखता रहा।

आपी अभी भी रो रही थीं और उनकी आँखों से आँसू गिरना जारी थे।

रोते-रोते ही आपी ने अपनी सलवार पहनी और फिर क़मीज़ से अपने आँसू साफ करके क़मीज़ पहन ली। लेकिन ना तो आपी के आँसू रुक रहे थे और ना ही उनकी हिचकियाँ कम हो रही थीं।

उन्होंने अपना स्कार्फ सिर्फ़ पर बाँधा और ब्रा से अपनी आँखों को रगड़ते हुए हमारी तरफ नज़र डाले बगैर रूम से बाहर चली गईं।

आपी के जाने के बाद भी मैं कुछ देर वैसे ही गुमसुम सा खड़ा रहा कि एकदम से फरहान की आवाज़ आई- भाई.. भाई आप थोड़ा..

मैंने फरहान के पुकारने से घूम कर उसे देखा और उसकी बात काट कर बोला- यार अब तो मेरा दिमाग मत चोदने लग जाना.. मैं वैसे ही बहुत टेन्शन में हूँ।

मैं यह बोल कर ऐसे ही नंगा ही अपने बिस्तर की तरफ चल दिया.. तो फरहान सहमी हुए से अंदाज़ में बोला- भाई आप मुझ पर क्यों गुस्सा हो रहे हैं.. मेरा क्या क़ुसूर है?

मुझे फरहान की आवाज़ इस वक़्त ज़हर लग रही थी। उसके दोबारा बोलने पर मैंने गुस्से से उससे देखा.. तो उसकी मासूम और मायूस सूरत देख कर मेरा गुस्सा एकदम से झाग की तरह बैठ गया और मैंने सोचा यार वाकयी ही इस बेचारे का क्या क़ुसूर है.. मैंने उससे कुछ नहीं कहा और बिस्तर पर लेट कर अपनी आँखों पर बाज़ू रख लिया।

तकरीबन 5-7 मिनट बाद मुझे कैमरा याद आया.. तो मैंने आँखों से बाज़ू हटा कर फरहान को देखा.. वो अभी तक वहाँ ज़मीन पर ही बैठा था लेकिन अब उसका चेहरा नॉर्मल नज़र आ रहा था और शायद वो कुछ देर पहले के आपी के साथ गुज़रे लम्हात में खोया हुआ था।

मैंने उसके चेहरे पर नज़र जमाए हुए ही उसे आवाज़ दी- फरहान!!
उसने चौंक कर मुझे देखा और बोला- जी भाई?
‘यार वो कैमरा टेबल पर पड़ा है.. उसकी रिकॉर्डिंग ऑफ कर दे।’

यह कहते ही मैंने वापस अपनी आँखों पर बाज़ू रखा ही था कि फरहान की खुशी में डूबी आवाज़ आई- वॉववव भाई.. आपने सारी मूवी बनाई है?

मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और आपी के बारे में सोचने लगा.. मुझे अपने आप पर शदीद घुसा आ रहा था कि मैंने अपनी फूल जैसी बहन को इतना रुलाया किया था कि अगर मैं अपने ऊपर कंट्रोल करता और ये सब ना करता..

लेकिन मैं भी क्या कर सकता था.. उस वक़्त मेरा जेहन कुछ सोचने-समझने के क़ाबिल ही नहीं रहा था।
ऐसी भी क्या बेहोशी यार.. मर्द को अपने ऊपर इतना तो कंट्रोल होना ही चाहिए।

मैं ऐसी ही मुतज़ाद सोचों से लड़ रहा था कि आहिस्ता-आहिस्ता बिस्तर के हिलने से मेरे ख़यालात का सिलसिला टूटा और मैंने आँखें खोल कर देखा तो फरहान बिस्तर की दूसरी तरफ लेट कर कैमरा हाथ में पकड़े हमारी मूवी देखते हुए मुठ मार रहा था।

मैंने चिड़चिड़े लहजे में कहा- यार क्या है फरहान.. सोने दे मुझे.. जा बाथरूम में जा कर देख.. वहाँ ही मुठ मार..
मेरे इस तरह बोलने से फरहान डर कर फ़ौरन उठते हुए बोला- अच्छा भाई सॉरी.. आप सो जाओ।
वो बाथरूम की तरफ चल दिया।

फरहान के जाते ही मैंने दोबारा अपनी आँखें बंद कर लीं.. मेरा जेहन बहुत उलझा हुआ था।
आपी के रोने की वजह से दिल पर अजीब सा बोझ था और उन्हीं सोचों से लड़ते-झगड़ते जाने कब मुझे नींद आ गई।

अपनी गर्दन पर शदीद तक़लीफ़ के अहसास से मेरे मुँह से एक सिसकी निकली.. बेसाख्ता ही मेरे हाथ अपनी गर्दन की तरफ उठे और बालों के गुच्छे में उलझ गए।

मैंने हड़बड़ा कर आँख खोली तो एक जिस्म को अपने ऊपर झुका पाया..
वो जिस्म मेरे ऊपर बैठा था और उसने अपने दाँत मेरी गर्दन में गड़ा रखे थे कि जैसे मेरा खून पीना चाहता हो।

मैंने उसके सिर के बालों को जकड़ा और ज़रा ताक़त से ऊपर की तरफ खींचा तो मेरी नज़र उसके चेहरे पर पड़ी।

वो चेहरा तो मेरी बहन का ही था.. लेकिन अजीब सी हालत में.. आपी के बाल बिखरे और उलझे हुए थे। दाँतों को आपस में मज़बूती से भींच रखा था और आँखें लाल सुर्ख हो रही थीं कि जैसे उन में खून उतरा हुआ हो!

उनके बाल मेरे हाथ में जकड़े हुए थे और ताक़त से खींचने की वजह से उनके चेहरे पर दर्द का तब्स्सुर भी पैदा हो गया और गुलाबी रंगत लाली में तब्दील हो कर एक खौफनाक मंजर पेश कर रही थी।

वो चेहरा आपी का नहीं बल्कि किसी खौफनाक चुड़ैल का चेहरा था।

मेरी नींद मुकम्मल तौर पर गायब हो चुकी थी.. मैं हैरत से बुत बना आपी के चेहरे को ही देखा जा रहा था और मेरी गिरफ्त उनके बालों पर ढीली पड़ चुकी थी।

आपी ने अपने सिर पर रखे मेरे हाथ को कलाई से पकड़ा और झटके से अपने बालों से अलग करके सीधी बैठीं.. तो आपी के सीने के बड़े-बड़े उभारों और खड़े पिंक निप्पल्स पर मेरी नज़र पड़ी.. जो आज कुछ ज्यादा ही तने हुए महसूस हो रहे थे।

उसी वक़्त मुझ पर ये वज़या हुआ कि आपी बिल्कुल नंगी हैं.. कुछ देर पहले आपी के नंगे उभार मेरे सीने से ही दबे हुए थे.. लेकिन तक़लीफ़ के अहसास और फिर आपी की अजीब हालत के नज़ारे में खोकर मैं इस पर तवज्जो नहीं दे सका था।

आपी मेरी रानों पर सीधी बैठी.. कुछ देर तक अपनी खूँख्वार आँखों से मुझे देखती रहीं.. फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे पेट पर रख कर ज़ोर दिया और नीचे उतर कर मेरे सिकुड़े हुए लण्ड को पकड़ा और पूरी ताक़त से खींचते हुए भर्राई आवाज़ में बोलीं- उठो सगीर.. जल्दी।

उनकी आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी गहरे कुँए से आ रही हो।

आपी ने मुझे लण्ड से पकड़ कर खींचा था और लण्ड पर पड़ने वाले खिंचाव के तहत मैं बेसाख्ता खिंचता हुआ सा खड़ा हो गया।

मेरे खड़े होने पर भी आपी ने मेरे लण्ड को अपने हाथ से नहीं छोड़ा और इसी तरह मज़बूती से लण्ड को पकड़े अपने क़दम आगे बढ़ा दिए।

मैं सिहरजदा सी कैफियत में कुछ बोले.. कुछ पूछे.. बिना ही आपी के पीछे घिसटने लगा।

आपी के लंबे बालों का ऊपरी हिस्सा खुला था.. लेकिन बालों के निचले हिस्से पर चुटिया सी अभी भी कायम थी। ऊपरी घने बाल बिखरे होने की वजह से उनकी कमर मुकम्मल तौर पर छुप गई थी.. लेकिन जहाँ से आपी के कूल्हों की गोलाई शुरू होती थी.. वहाँ से बालों की चुटिया भी शुरू हो जाती थी.. जो आपी के खूबसूरत गोल-गोल कूल्हों की दरमियानी लकीर में किसी बल खाते साँप की तरह आती और लकीर के दरमियानी हिस्से को चूम कर कभी दायें और कभी बायें कूल्हे की ऊँचाइयों को चाटने निकल जाती।

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आपी कमरे का दरवाज़ा खोलने को रुकीं.. तो मैंने देखा कि उनकी सलवार वहाँ ही दरवाज़े के पास पड़ी थी.. जो मेरे पास बिस्तर पर आने से पहले आपी ने उतार फैंकी होगी।

मैं आपी की क़मीज़ की तलाश में सलवार के आस-पास नज़र दौड़ा ही रहा था कि मेरा जिस्म झटके से आगे बढ़ा।

आपी दरवाज़ा खोल चुकी थीं और उन्होंने बाहर निकलते हुए मेरे लण्ड को झटके से खींचा था। मेरा क़दम खुद बखुद ही आगे को उठ गया और इतनी देर में पहली बार मेरी ज़ुबान खुली- यार आपी कहाँ ले जा रही हो.. कुछ बोलो तो?

आपी ने रुक कर एक नज़र मुझे देखा और बोली- स्टडी रूम में..
यह कह कर उन्होंने फिर चलना शुरू कर दिया.. मैं भी आपी के पीछे ही क़दम उठाने लगा..

तो सीढ़ियों के पास मेरे पाँव में कोई कपड़ा उलझा और मैंने गिरते-गिरते संभल कर देखा तो वो आपी की क़मीज़ थी.. मेरे जेहन ने फ़ौरन कहा मतलब आपी ने सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते क़मीज़ उतारी होगी और ऊपर पहुँचते ही सिर से निकाल फैंकी होगी।

मेरे लड़खड़ाने पर भी आपी रुकी नहीं थीं और मैं संभल कर फिर से उनके पीछे चलता हुआ स्टडी रूम में दाखिल हो गया।

स्टडी रूम के दरवाज़े के पास ही मेरे बिल्कुल सामने खड़े हो कर आपी ने लण्ड को छोड़ा और आहिस्तगी से अपने दोनों हाथ उठा कर मेरे सीने पर रख दिए और अपनी गर्दन को राईट साइड पर झुकाते हुए.. नर्मी से हथेलियाँ मेरे सीने पर फेरने लगीं।

आपी ने 3-4 बार ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर.. मेरे सीने को सहलाते हुए हाथ फेरे और फिर दोनों हथेलियाँ गर्दन से थोड़े नीचे रखते हुए ताक़त से मुझे धक्का दिया और घूम कर दरवाज़ा लॉक करने लगीं।

आपी के इस अचानक धक्के से मैं लरखड़ाता हुआ दो क़दम पीछे हट गया.. आपी की यह कैफियत मेरी समझ में नहीं आ रही थी।

ऐसा लग रहा था जैसे उनके जिस्म में कोई खबीस की रूह घुस गई हो और वो उस खबीस रूह के ज़ेरे-असर ये सब कर रही हों।

आपी दरवाज़ा लॉक करके घूमीं और लाल सुर्ख आँखों से मुझे देखने लगीं.. यकायक ही आपी की अंगार आँखों में एक चमक सी पैदा हुई और किसी शेरनी के अंदाज़ में वो मुझ पर झपट पड़ीं।

मैं आपी के इस अचानक के हमले के लिए तैयार नहीं था.. इसलिए जब उनका बदन मेरे जिस्म से टकराया तो मैं खुद को संभाल ना पाया और लड़खड़ाता हुआ पीछे की जानिब गिरा और आपी ने भी मुझ पर चढ़ते हुए मेरे साथ ही नीचे आ गिरीं।
लेकिन फर्श पर नरम कार्पेट होने की वजह से मुझे चोट नहीं लगी थी लेकिन आपी को तो जैसे कोई परवाह ही नहीं थी कि मैं मरूं या जीऊँ।

आपी मेरे ऊपर छा सी गईं।

मैं झटके से ज़मीन पर गिरा.. जिसकी वजह से एक लम्हें के लिए मेरा लण्ड.. जो उस वक़्त कुछ ढीला कुछ अकड़ा सा था.. भी ऊपर पेट की जानिब झटके से उठा था और उसी वक़्त आपी मेरे ऊपर बैठीं.. तो मेरे लण्ड का निचला हिस्सा मुकम्मल तौर पर आपी की चूत की लकीर में फिट हुआ और मेरी कमर ज़मीन से टच हो गई।

आपी ने अपनी चूत की लकीर में मेरे लण्ड को दबाए हुए ही अपने घुटने मेरे जिस्म के इर्द-गिर्द नीचे कार्पेट पर टिकाए और अपने सीने के उभारों को मेरे सीने पर दबा कर वहशी अंदाज़ में मेरी गर्दन को चूमने और दाँतों से काटने लगीं।

मुझे आपी के दाँतों से तक़लीफ़ भी हो रही थी.. लेकिन हैरत अंगैज़ तौर पर इस तक़लीफ़ से मुझे अनजानी सी लज्जत महसूस होने लगी।
मेरा लण्ड आपी की चूत के नीचे दबे हुए ही सख़्त होना शुरू हो गया।

आपी ने दाँतों से काटने के साथ-साथ अब मेरे कंधों.. बाजुओं.. सीने.. गरज़ यह कि जहाँ-जहाँ उनका हाथ पहुँच सकता था.. वहाँ से मुझे नोंचना शुरू कर दिया था और अपने तेज नाख़ुनों से मुझ पर खरोंचें डालती जा रही थीं।

मैंने आपी को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश नहीं की.. ये अज़ीयत.. ये तक़लीफ़.. मेरे अन्दर जैसे बिजली सी भरती जा रही थी और मेरा अंदाज़ भी वहशियाना होता चला गया।

मैंने भी आपी की कमर पर दोनों हाथ रखे और अपने नाख़ून उनके नर्म-ओ-नाज़ुक बदन में गड़ा कर नीचे की तरफ घसीट दिया।

आपी ने फ़ौरन मेरी गर्दन से दाँत हटा कर चेहरा ऊपर उठाया.. उनके मुँह से अज़ीयत और लज़्ज़त से मिली-जुली एक कराह निकली ‘आओउ.. उउफफफ्फ़..’
मैंने इस मौके का फ़ायदा उठा कर फ़ौरन अपना हाथ आपी की गर्दन पर रखा और गर्दन जकड़ते हुए उनको थोड़ा और ऊपर को उठा दिया।

आपी के ऊपर उठने से उनके सीने के नर्मोनाज़ुक लेकिन खड़े उभार मेरे सामने आ गए।

मैंने एक लम्हा ज़ाया किए बगैर अपना सिर उठाया और उनके लेफ्ट उभार को अपने मुँह में भर कर अपने दाँतों से दबा दिया।

आपी ने तड़फ कर एक अज़ीयतजदा ‘आअहह..’ भरी.. अपनी कोहनी को मेरे सिर के पास ही ज़मीन पर टिकाया और हाथ से मेरे सिर के बाल जकड़ा और दूसरे हाथ की मुठी में मेरे सीने के बाल पकड़ कर खींचने लगीं।

हम दोनों बहन-भाई की ही हालत अजीब सी हो गई थी.. जो कि मैं सही तरह लफ्जों में बयान नहीं कर सकता। बस हमारे अंदाज़ में एक दीवानगी थी.. वहशीपन था.. हैवानियत थी.. जुनून था.. शैतानियत थी।

मेरी बहन मेरे लण्ड को अपनी चूत के नीचे दबाए मेरे सिर के बाल खींच रही थी.. दूसरे हाथ से मेरे सीने पर अपने नाख़ून गड़ा कर खरोंचती जा रही थी।

आपी ने मेरे सीने के बाल मुठी में भर कर खींचे.. तो सीने के बाल टूटने पर मैं तक़लीफ़ से बिलबिला उठा और आपी को छोड़ने की बजाए मज़ीद वहशी अंदाज़ में उनके सीने के उभार को मुँह से निकाल कर दोनों उभारों के दरमियानी हिस्से पर दाँत गड़ा दिए।

मेरा लण्ड अब मुकम्मल तौर पर खड़ा हो चुका था लेकिन वो ऊपर की तरफ सिर उठाए दबा हुआ था.. यानि मेरे लण्ड का ऊपरी हिस्सा मेरे बालों वाले हिस्से से चिपका हुआ था।

मेरे लण्ड की नोक नफ़ से कुछ ही नीचे टच थी और मेरे लण्ड का निचला हिस्सा आपी की चूत की लकीर में कुछ इस तरह बैठा हुआ था कि आपी की चूत के लिप्स ने मेरे लण्ड की दोनों साइड्स को भी ढांप दिया था।

आपी की चूत ने कुछ इस तरह मेरे लण्ड को अपनी आगोश में ले रखा था कि जैसे मुर्गी चूज़े को अपने पैरों में छुपा लेती है।

आपी की चूत से बहते गाढ़े और चिकने पानी ने मेरे पूरे लण्ड को तर कर दिया था। आपी के हिलने से उनकी चूत मेरे लण्ड पर ही फिसल-फिसल जाती थी।

जब आगे फिसलने पर उनकी चूत का दाना मेरे लण्ड की नोक से टच होता.. तो उनके बदन में झुरझुरी सी उठती.. और आपी लरज़ कर मज़ीद वहशी अंदाज़ में अपने दाँत और नाख़ूनों को मेरे जिस्म में गड़ा देतीं।

हम दोनों बहन-भाई इसी तरह जुनूनी अंदाज़ में एक-दूसरे को नोंचते खसोटते दुनिया-ओ-माफिया से बेखबर अपने जिस्मों को सुकून पहुँचाने की कोशिश कर रहे थे।

मैंने आपी के सीने के खूबसूरत उभारों पर दाँत गड़ाने के बाद उनकी गर्दन के निचले हिस्से को दाँतों में दबाया तो आपी ने भी उससे अंदाज़ में फ़ौरन अपना चेहरा मेरी दूसरी साइड पर लाकर मेरे कंधों में दाँत गड़ा दिए।

मैं आपी की कमर को खरोंचता हुआ अपने हाथ नीचे लाया और अपनी बहन के दोनों कूल्हों को अपने दोनों हाथों से पूरी ताक़त से नोंच कर मुख़्तलिफ़ करने में ऐसे ज़ोर लगाने लगा.. जैसे मैं उनके दोनों कूल्हों को बीच से चीर देना चाहता हूँ।

‘अहह सगीर..’
आपी ने एक चीखनुमा सिसकी भरी और तड़फ कर ऊपर को उठीं.. आपी ने अपना ऊपरी जिस्म ऊपर उठा लिया.. लेकिन निचला हिस्सा ना उठा सकीं.. क्योंकि मैंने बहुत मज़बूती से उनके कूल्हों को नोंच कर चीरने के अंदाज में पकड़ रखा था.. जिसकी वजह से उनका निचला दर मेरे जिस्म पर दब कर रह गया था।

मेरे यूँ आपी के कूल्हों को चीरने से उन्हें जो तक़लीफ़ हो रही थी.. वो उनके चेहरे से दिख रही थी।
आपी ने अपने कूल्हों को छुड़ाने के लिए तड़फते हुए ऊपर उठने की कोशिश करते हुए.. ज़ोर लगा लगाया और मुस्तक़िल कराहते हुए कहा- आईईईई.. सगीर.. बहुत दर्द हो रहा है प्लीज़..

यह इस पूरे टाइम में पहली बार थी कि आपी के मुँह से कोई अल्फ़ाज़ निकले हों..
इस बात ने मुझ पर यह भी वज़या कर दिया कि ऐसे कूल्हे चीरे जाने से आपी को वाकयी ही बहुत शदीद तक़लीफ़ हो रही है।

मैंने अपने हाथों की गिरफ्त मामूली सी लूज की.. तो आपी का निचला दर ऊपर को उठा और उसके साथ ही उनकी चूत के नीचे दबा मेरा लण्ड भी आपी की चूत से रगड़ ख़ाता हुआ सीधा हो गया।

मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के ठीक एंट्रेन्स पर एक पल को रुकी और मैंने अपने हाथों से आपी के कूल्हों को हल्का सा नीचे की तरफ दबाया और अगले ही लम्हें मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अन्दर उतर गई।

जैसे ही मेरे लण्ड की नोक आपी की चूत के अन्दर घुसी.. तो उससे महसूस करते ही आपी के मुँह से एक तेज लज़्ज़त भरी ‘आअहह..’ निकली और उन्होंने आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पीछे को ढलका दी। उसके साथ ही जैसे सुकून सा छा गया.. तूफ़ान जैसे थम सा गया हो.. हर चीज़ कुछ लम्हों के लिए ठहर सी गई।

मैंने आहिस्तगी से अपने हाथ से आपी के कूल्हों की खूबसूरत गोलाइयों को छोड़ा और हाथ उनके जिस्म से चिपकाए हुए ही धीरे से आपी की कमर पर ले आया। आपी ने भी एक बेखुदी के आलम में अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिए।

अब पोजीशन ये थी कि मैं सीधा चित्त कमर ज़मीन पर टिकाए लेटा हुआ था.. मैंने आपी की कमर को दोनों तरफ से अपने हाथों से थाम रखा था.. मेरी कमर की दोनों तरफ में आपी के घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे और वो मेरे हाथों पर अपने हाथ रखे.. गर्दन पीछे को ढुलकाए हुए.. लंबी-लंबी साँसें ले रही थीं।

चंद लम्हें ऐसे ही बीत गए.. फिर आपी ने अपनी गर्दन को साइड से घुमाते हुए सीधा किया और आँखें बंद रखते हुए ही धीमी आवाज़ में बोलीं- सगीर मुझे लिटा दो नीचे..

यह कहते ही आपी अपनी लेफ्ट और मेरी राईट साइड पर थोड़ी सी झुकीं और अपनी कोहनी ज़मीन पर टिका कर सीधी होने लगीं।

आपी के साइड को झुकते ही मैं भी उनके साथ ही थोड़ा ऊपर हुआ और आपी की चूत में अपने लण्ड का मामूली सा दबाव कायम रखते हुए ही उनके साथ ही घूमने लगा।

मैंने लण्ड के दबाव का इतना ख़याल रखा था कि लण्ड मज़ीद अन्दर भी ना जा सके और चूत से निकलने भी ना पाए।

थोड़ा टाइम लगा.. लेकिन आहिस्तगी से ही मैं अपना लण्ड आपी की चूत के अन्दर रखने में ही कामयाब हो गया और हम दोनों मुकम्मल घूम गए।

वाकिया जारी है।
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