एक भाई की वासना -10

(Ek Bhai Ki Vasna-10)

सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
फैजान भी जब से ऑफिस से आया था.. तो वो गर्म हो रहा था, उसने मौका मिलते ही मुझे अपने पास खींच लिया और मेरे गालों को चूमने लगा।
मैंने अपना हाथ उसके पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर रखा और बोली- क्या बात है.. आज बड़े गरम हो रहे हो?
फैजान ने भी मेरा बरमूडा थोड़ा सा घुटनों से ऊपर को खिसकाया और मेरी जाँघों को नंगी करके उस पर हाथ फेरने लगा।
थोड़ी देर मैं जैसे ही जाहिरा चाय बना कर वापिस आई तो फैजान ने अपना हाथ मेरी नंगी जाँघों से हटा लिया लेकिन मैं अभी भी उसके साथ चिपक कर बैठे रही।

जाहिरा ने हम पर एक नज़र डाली और जब मेरी नज़र से उसकी नज़र मिली.. तो वो धीरे से मुस्करा दी और मैंने भी उसे एक स्माइल दी।
फिर हम सब चाय पीने लगे और मैं उसी हालत मैं अपने शौहर के साथ चिपक कर बैठे रही। मेरी जाँघें अभी भी नंगी थीं लेकिन मुझे कोई फिकर नहीं थी कि मैं अपनी नंगी जाँघों को कवर कर लूँ।
जाहिरा भी मेरी नंगी जांघ और मेरे हाथों को अपने भाई की जाँघों पर सरकते हुए देखती रही।
अब आगे लुत्फ़ लें..

फिर हम दोनों रसोई में गईं तो जाहिरा मुझे छेड़ती हुए बोली- भाभी आपको तो बिल्कुल भी शरम नहीं आती.. कैसे चिपक कर बैठे हुई थीं आप.. भैया के साथ?
मैं मुस्कुराई और बोली- जब तेरी शादी होगी ना.. तो देखना तेरा शौहर तुझे हर वक़्त अपनी साथ चिपका कर रखेगा।
जाहिरा- नहीं जी.. भाभी जी.. मैं आपकी तरह बेशर्म नहीं हूँ.. जो हर वक़्त चिपकी रहूँगी।
मैं- अरे तू ना भी चिपकेगी.. तो भी तेरी जैसे चिकनी लड़की को कौन सा मर्द होगा.. जो अपने साथ ना चिपकाना चाहेगा.. सच कहूँ.. यह तो तू फैजान की बहन है.. तो बची हुई है.. वरना फैजान ही कब का तुझे…
मैं यह बात कह कर हँसने लगी।

जाहिरा का चेहरा सुर्ख हो गया और वो शर्मा कर बोली- भाभी क्या है ना.. आप कुछ भी बोल देती हो.. कुछ तो शरम करो ना.. वो मेरे भैया हैं और आप उनकी बारे में ऐसी बातें कह रही हो।

मैं मुस्कुराई और उसकी गाल पर हाथ फेरती हुई बोली- क्या करूँ.. जो सच है वो कह दिया.. तू बहन है उसकी.. लेकिन फिर तू इतनी खूबसूरत है कि वो तेरा भाई होकर भी तुझे देखता रहता है, मैं तो खुद तुझ से जलने लगी हूँ।
मैंने प्यार से उसकी चूची पर चुटकी काटते हुए कहा।

जाहिरा शर्मा गई.. मैं जाहिरा के दिल में भी हल्की सी चिंगारी जलाना चाहती थी.. ताकि वो भी फैजान की तरफ थोड़ा ध्यान दे और उसे भी अंदाज़ा हो सके कि उसका भाई उसकी तरफ देखता है।
मैं अपने मक़सद में कामयाब भी हो गई थी। जाहिरा को शरमाती देख कर मैं धीरे से मुस्कुराई और अपने बेडरूम की तरफ बढ़ते हुए बोली- अच्छा भई.. मैं तो अब चली अपनी जानू के साथ एंजाय करने..

मेरी बात पर जाहिरा मुस्करा दी और मैं अपने बेडरूम की तरफ बढ़ गई।
अपने बेडरूम में आई तो फैजान पहले से ही लेट चुका हुआ था, मैं भी उसके साथ ही लेट गई। बिस्तर पर लेटते साथ ही फैजान ने मुझे अपनी तरफ खींच लिया और अपनी बाँहों में लेकर चूमने लगा।

मैं भी सुबह से एक भाई की अपनी बहन के लिए हवशी नजरें देख-देख कर गरम हो रही थी.. इसलिए कोई भी विरोध नहीं किया और उसका साथ देनी लगी।
जैसे ही मैंने उसके लण्ड पर हाथ रखा तो मुझे वो पहले से ही तैयार मिला.. पता नहीं अभी तक उसके ज़हन में शायद अपनी बहन का जिस्म घूम रहा था.. जो वो अकड़ा हुआ था।

मैं दिल ही दिल में मुस्कराई और उसका पजामा नीचे उतार कर उसका लंड बाहर निकाल लिया.. अब मैं उसे अपने बरमूडा के ऊपर से ही अपनी चूत पर रगड़ने लगी।

फैजान ने मेरा बरमूडा भी उतारा और फ़ौरन ही मेरी ऊपर को सरका कर अपना लंड मेरी चूत में ‘खच्च’ से डाल दिया। मेरी चूत पहले से ही गीली हो गई थी।
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धीरे-धीरे फैजान ने मुझे चोदना शुरू कर दिया… वो मेरे होंठों और मेरे गालों को चूमते हुए अपना लंड मेरी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था और मैं भी उसकी नंगी कमर पर हाथ फेरते हुए उसको सहला रही थी।

अचानक ही मैं बहुत ही मस्त आवाज़ में बोली- यार तुम तो जाहिरा का भी ख्याल नहीं करते.. हर वक़्त तुमको मुझे चोदने का ही ख्याल रहता है..
मैंने यह बात सिर्फ़ और सिर्फ़ उसके दिमाग में उसकी बहन का अक्श लाने के लिए कही थी।

अजीब बात यह हुई कि.. हुआ भी ऐसा ही.. जैसे ही मैंने जाहिरा का नाम लिया तो फैजान की आँखें बंद हो गईं और उसके धक्कों की रफ़्तार में तेजी आ गई।
वो मेरे होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा।
मैं समझ गई कि इस वक़्त वो अपनी बहन का चेहरा ही अपनी आँखों के सामने देख रहा है। मैंने भी उसे डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा और भी जोर से उसे अपने साथ लिपटा लिया।

अभी भी उसकी आँखें बंद थीं और वो धनाधन अपना लंड मेरी चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था.. बल्कि शायद अपनी ख़यालों में अपनी बहन की चूत चोद रहा था।
थोड़ी देर बाद फैजान ने अपना माल मेरी चूत में ही छोड़ दिया और धीरे से मेरी बगल में ही ढेर हो गया।

उसकी आँखें अभी भी बंद थीं और वो लंबी-लंबी साँस ले रहा था, चुदाई के बाद उसकी ऐसी हालत पहली कभी नहीं हुई थी।
मैंने भी उसकी तरफ करवट ली और धीरे-धीरे उसकी सीने पर हाथ फेरते हुए मुस्कराने लगी। मेरा तीर ठीक निशाने पर लगा था और मेरा शौहर अभी भी अपनी बहन के बारे में ही सोच रहा था।

अगले दिन फैजान ने ऑफिस से छुट्टी कर ली और घर पर ही था। जाहिरा कॉलेज के लिए तैयार हुई तो फैजान ने बाइक निकाली और उसे कॉलेज छोड़ आया।
उसके वापिस आने के बाद हम दोनों ने नाश्ता किया और कुछ देर के बाद मैं नहाने चली गई। फैजान वहीं टीवी लाउंज में ही टीवी देख रहा था।

नहा कर मैंने बाथरूम का टीवी लाउंज वाला दरवाजा खोला और फैजान से बोली- यार यहाँ टेबल पर जो धुले हुए कपड़े पड़े हैं.. उन में से मेरी ब्रेजियर तो उठा दो प्लीज़..
फैजान- ओके डार्लिंग..

यह कह कर वो कपड़ों की तरफ बढ़ा और उसे जाता हुआ देख कर मैं मुस्कराने लगी.. क्योंकि सब कुछ मेरी स्कीम के मुताबिक़ ही हो रहा था। दरअसल मैंने फैजान और जाहिरा के जाने के बाद उन कपड़ों के ढेर में से अपनी ब्रेजियर निकाल ली हुई थी और अब वहाँ पर सिर्फ़ और सिर्फ़ जाहिरा की ही एक ब्रेजियर पड़ी हुई थी।

वो ही हुआ.. कि फैजान कपड़ों के ढेर के पास गया और उसमें से कपड़े उलट-पुलट करने लगा। उसे उस कपड़ों के ढेर में से सिर्फ़ एक ही काली रंग की ब्रेजियर मिली और वो उसे उठा कर मेरे पास ले आया और बोला- यह लो डार्लिंग..
मैंने ब्रेजियर ली और फैजान वापिस जा कर सोफे पर बैठ गया। जैसे ही वो वापिस गया तो मैंने उसे दोबारा बुलाया।

मैं- अरे यार यह क्या है… यार.. यह तो तुम जाहिरा की ब्रेजियर उठा ले आए हो.. मेरी लाओ ना निकाल कर.. तुमको पता नहीं चलता कि क्या.. कि यह कितनी छोटी है?

फैजान ने चौंक कर मेरी तरफ देखा और मैंने खुले दरवाजे से उसकी बहन की ब्रेजियर उसकी हाथ में पकड़ा दी।
फैजान ने एक नज़र मेरी नंगी चूचियों पर डाली और मैंने जानबूझ कर बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा बंद कर दिया ताकि वो मुझे ना देख सके… लेकिन मैं छुप कर उसे देखने लगी कि वो क्या करता है?

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अभी वाकिया बदस्तूर है।
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