अफ्रीकन सफ़ारी लौड़े से चुदाई-7

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जूही परमार
जैसे ही हमने दरवाज़ा खोला सविता सामने कुर्सी पर बैठी हुई थी।
हम दोनों उसको देख आश्चर्यचकित हो गए।
थोड़ी देर तक तो सविता घूरती रही और फिर हंसते हुए बोली- आखिर तुझे भी लग गया न इस अफ्रीकन लौड़े का चस्का? मुझे तो पहले से पता था कि तुझे यह बहुत पसंद आएगा, आखिर जब मुझे पसंद आ गया तो तुझे तो आना ही था।
मैं भी हंसने लगी और फिर हम दोनों बिस्तर पर बैठ गए।
उधर पीटर को हम दोनों ने इंग्लिश में समझा दिया कि हम दोनों बहुत अच्छी सहेलियाँ हैं इतनी कि हमारी हर छोटी से छोटी बात और हर मोटे से मोटे लंड के बारे में एक दूसरे के पता है। हम एक दूसरी से कुछ नहीं छुपाती।
पीटर भी सुन कर खुश हुआ, उसने अपना तौलिया हटाया और चड्डी पहन ली और फिर जीन्स पहन कर हमारे पास आकर बैठ गया। फिर मैंने सविता को संक्षेप में सब बताया कि कैसे सुबह सुबह पीटर ने मेरी गांड मारी और फिर हमने बाथरूम में क्या क्या मज़े किए। सविता को भी सुनने में मज़ा आ रहा था।
थोड़ी देर तक बातें करने के बाद सविता कहने लगी- तुम लोग बैठो, मैं खाना बनाती हूँ नीचे जाकर।
मैंने सविता को रोका और कहा- तुम थक गई होगी, रहने दो, मैं नीचे जाकर आज खाना बनाती हूँ, तब तक तुम यहाँ मज़े करो।
सविता के चेहरे पर मुस्कान आ गई जैसे उसकी दिल की बात मुझे समझ आ गई।
मैं बाहर जाने लगी, तभी पीटर ने मुझे रोक और पूछा- मैंने शाम को बाहर जाना है अपने दोस्त से मिलने, तो अगर बुरा न लगे तो तुम भी साथ चलो?
मैंने कहा- ठीक है, शाम को देखते हैं, अभी तुम आराम करो, मैं नीचे जाती हूँ।
मैं नीचे चली गई और सविता और पीटर आपस में बातें करने लगे।
मैं नीचे खाना बनाने लगी और खाना बनने के बाद नीचे मेरा भी मन नहीं लग रहा था क्योंकि सविता भी ऊपर थी और लौड़ा भी।
मैं खाना बना कर ऊपर चली गई।
ऊपर पहुँची तो देखा कि पीटर और सविता दोनों नंगे दोनों बैठे हुए थे, पीटर की टांगों पर सविता ने टांग रखी हुई थी और पीटर उसकी चूत सहला रहा था।
मैं चुपचाप जाके कोने में बैठ गई। मैंने ज़रा भी हलचल नहीं की, वे दोनों अपने में व्यस्त थे।
पीटर एक हाथ से सविता के मम्मे दबा रहा था और दूसरे हाथ से उसकी चूत में उंगली कर रहा था, सविता आँखें बंद करके सबका मज़ा ले रही थी और अपने दोनों हाथों से अपनी चूत के पास टांगों को पकड़ रखा था।
पीटर थूक लगा लगा कर उसकी चूत में उंगली कर रहा था और साथ ही साथ सहला भी रहा था।
सविता को भी बहुत मज़ा रहा था, यह उसकी हरकतों और ऊऊओह्ह… आआहह्ह की आवाज़ों से पता लग रहा था।
एकदम से पीटर ने अपनी उँगलियों का जादू दिखाना शुरू किया और जोर जोर से उसकी चूत में उँगलियाँ करने लगा।
सविता और साथ ही साथ पीटर की ऊऊओह आआह्ह्ह्ह की आवाज़ें भी तेज़ होती गई। पीटर की उंगलियाँ भी तेजी से सविता की चूत को फाड़ने लगी, धीरे धीरे चूत के आस पास सफ़ेद झाग सा आ रहा था, पर पीटर की तेजी बढ़ती जा रही थी और कुछ ही देर में सविता की चूत से उसका रस बाहर आने लगा और पीटर ने अपना हाथ उसकी चूत से निकाल कर चाट लिया और फ़िर बार बार उसकी चूत का रस हाथ में ले ले कर चटने लगा।
सविता को पूर्ण आनन्द की प्राप्ति हुई थी पीटर के हाथ से ! इसे हम ओर्गास्म या लड़कियों की चरमसीमा भी कह सकते हैं, यह बिल्कुल वैसे ही एहसास दिलाता है जैसे  लड़कों को एकसास होता है जब वे हस्थमैथुन करते हैं और करते वक़्त और करने के बाद जो एहसास होता है, यह बिल्कुल उसी के जैसा है।
थोड़ी देर तक दोनों यों ही लेटे रहे, फिर सविता पीटर के लंड की तरफ पलटी आर उससे चूमने लगी और चूसने लगी।
सविता बहुत आराम से प्यार से पीटर के लंड को धीरे धीरे चूस रही थी।
पहले सविता साइड से जाकर पीटर के लंड को चूस रही थी। फिर वो पीटर की टांगों के बीच में जाकर उसके लंड को दोबारा धीरे धीरे चूसने लगी।
कुछ देर तक पीटर का लंड चूसने के बाद सविता उसके लंड की सवारी करने को तैयार थी, उठ कर सीधे उसके लंड पर बैठ गई और पीटर को चूमने लगी।
चुम्बन करते करते पीटर उसके मम्मों को नेस्तानाबूद कर रहा था और बहुत ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था।कुछ देर बाद सविता ने अपना सर ऊपर छत की तरह किया और आँखें बंद करके आनन्द का एहसास लेने लगी।
थोड़ी देर बाद सविता पीटर के लंड पर उछल उछल कर चुदने लगी और अपने चूतड़ों को उठा उठा कर पीटर कर लंड पर पटकने लगी। काफी देर तक दोनों ने ऐसे ही चुदाई की और फिर दोनों बिना झड़े सुस्त पड़ गये, मैं समझ गई थी कि दोनों की असली चुदाई मेरे आने से पहले ही हो चुकी थी, मेरे आने के बाद तो बस आखिर का कुछ खेल बचा था।
मैं उठी और पीछे से सविता के चूतड़ों पर एक चाँटा मार कर आगे आ गई, पीटर के होंठों पर हल्का सा चुम्बन किया और कहा- खाना तैयार है, यही ले आती हूँ, तब तक तुम मज़े लूटो।
सविता हंसने लगी और मैं नीचे चली गई, खाना लिया और ऊपर आ गई।
सविता ने अपना पेटीकोट पहना, ब्रा पहनी और आकर बैठ गई। उधर पीटर ने भी अपना तौलिया लपेट लिया और खाने आ गया।
तीनों ने बैठ कर खाना खाया।
पीटर खाना खाकर बेड पर लेट गया और हम दोनों वहीं पर बैठी बातें करने लगी।
पीटर सो गया था इसलिए हम दोनों दरवाज़ा बंद करके नीचे चली आई और फिर से बातें करने लगी और टीवी देखने लगी।
बातों बातों में पता ही नहीं चला अब शाम के पाँच बज गए। पीटर तैयार होकर नीचे आ गया और मुझे कहने लगा- तैयार हो जाओ, हमें फ्रेंड से मिलना है।
मैं कमरे में गई, झट से जीन्स चढ़ाई, टीशर्ट पहन कर बाहर आ गई। फिर हम दोनों ने रेडियो कैब की और पीटर के फ्रेंड अब्दुल से मिलने चले गए।
हम लोग उसके दोस्त से मिले, उसे साथ लिया और फिर अस्पताल चले गए जहाँ पीटर का दोस्त दाखिल था जिस वजह से वो सब यहाँ आये हुए थे। अस्पताल में हमे पीटर के तीन चार दोस्त और मिल गए। पीटर ने मुझे सबसे मिलवाया।
उन चार लोगों में एक लड़की और तीन लड़के थे।
उन तीन लड़कों में से एक उस लड़की का बॉय फ्रेंड था। हम लोग यों ही हंसी मज़ाक करने लगे और पीटर अपने दोस्त से मिलने आई सी यू में चला गया, पीटर के दोस्त भी अपनी बातों में लग गए।
मैं भी अकेली बोर होने लगी थी इसलिए अब्दुल से बातें करनी लगी। हम इधर उधर चलते चलते एक दूसरे के संग हंसी मज़ाक करने लगे।
पीटर ने अपनी भाषा ने पहले ही अब्दुल को मेरे बारे में सब बता रखा था। उसने बातों बातों में मुझसे पूछ ही लिया कि क्या मैं पीटर को पसंद करती हूँ?
मैं थोड़ी आश्चर्यचकित हुई और हंसते हुए हाँ कहा, हमारी बातें चालू रही।
उसका अगला सवाल था कि मुझे पीटर में क्या पसंद आया?मैंने कहा- उसके लुक्स, बॉडी, आदत तहजीब !
फिर वो बोला और तो मुझे कहना ही पड़ा- और सेक्स भी।
तो वो भी मंद मंद मुस्कान देने लगा। फिर उसने पूछा- सेक्स तो फिर सेक्स में क्या पसंद आया पीटर में?
तो मैंने जवाब दिया- उसकी अजीबोगरीब नायाब पोसिशन, लम्मी देर तक टिके रहना, लड़की को भी मज़े दिलाना, हार्डकोर सेक्स और उसके बड़े बड़े मोटे मोटे होंठ और उसका लम्बा काला लंड।
यह सुन अब्दुल हंसने लगा और उसके चेहरे से लार टपकती साफ़ दिखाई दे रहा था।
मैं भी इशारा समझ रही थी कि यह भी मुझे चोदने की इच्छा रखता है तो मैंने भी सोचा यहाँ जहाँ एक, वहाँ दो सही।
आखिर एक से भले दो।
पर मैंने अब्दुल को ऐसी किसी भी अपनी इच्छा का आभास नहीं होने दिया और हम अपनी बातों में लगे रहे।
थोड़ी ही देर में पीटर भी वापस आ गया और हम तीनों बाहर आ गए।
पीटर ने अब्दुल से कहा- हमारे घर चलो, थोड़ी देर आराम करना और फिर वापस आ जाना।
अब्दुल ने थोड़ा बहुत ना-नुकुर किया और फिर मान गया और हम तीनों टैक्सी करके सविता के घर के लिए रवाना हो गए।
पूरे रास्ते पीटर और अब्दुल अपनी भाषा में खुसुर-फुसुर करते रहे और हंसते रहे, मुझे समझ नहीं आ रहा था, पर मैं भी हंस रही थी। उनके साथ बीच बीच में पीटर मेरी पीठ भी सहला रहा था।
हम लोगो गाड़ी से उतरे और सविता की घर की तरफ जाने लगे।
हम दोनों आगे आगे और अब्दुल थोड़ा पीछे पीछे आने लगा।
जब हम आगे आगे चल रहे थे तो पीटर ने मुझे बताया अब्दुल उसका सबसे अच्छा दोस्त है और वो उससे कोई बात नहीं छुपाता, उसने मेरे और सविता के बारे में उससे सब बता दिया है। अगर मैं चाहूँ तो पीटर हम दोनों को मिला सकता है और फिर हम चारों मिल कर मज़े कर सकते हैं।
मैं थोड़ा अकबकाई और फिर कहा- घर चल कर बात करते हैं, देखते हैं सविता क्या कहती है, क्यूंकि घर तो आखिर उसी का है।
पीटर ने भी हामी भर दी और हम लोग घर आ गए।
सविता हमारे साथ अब्दुल को देख थोड़ा सकपकाई और फिर हम लोग बैठ कर बातें करने लगे।
पीटर ने मेरा हाथ पकड़ा और सविता से कहा- मुझे थोड़ा काम है जूही से, हम दोनों थोड़ी देर में नीचे आते है।
मेरा मन नहीं था पर वो मेरा हाथ पकड़ के मुझे ऊपर ले आया।
मैं समझ गई थी ऊपर क्या काम है उसको।
अब मैं पीटर की रग रग से वाकिफ होने लगी थी, उसके फड़कते हुए लंड को मैं दूर से ही सूंघने लग गई थी।
पीटर ने झट से दरवाज़ा खोला और मुझे अंदर खींच कर बगल में रखी टेबल पर मेरा सर रखा और मुझे झुका दिया।
उसने झट से आगे से मेरी जीन्स का बटन खोला, ज़िप खींच कर मेरी जीन्स मेरे घुटनों तक कर दी। फिर उसने मेरी पेंटी भी नीचे कर दिया और सट से अपना लंड का टोपा मेरी चूत से सटा दिया। और फिर एक झटके में ही छपाक की आवाज़ के साथ पीटर का आधा लंड मेरी चूत के अंदर समा गया और फिर धीरे धीरे पीटर झटके दे दे के मेरी चूत चोदने लगा।
पीटर ने मेरी कमर पकड़ ली और झटके देना जारी रखा।
अब पीटर का पूरा लंड मेरी चूत के अंदर था और ‘फछ्ह्ह्ह फच्च’ की आवाज़ें आ रही थी, जब उसका लंड मेरी चूत को चोद रहा था, ऐसा लग रहा था कि मेरी चूत एक साथ दो काम कर रही है, पीटर के लंड की ख़ुशी में हंस भी रही है और इतने मोटे काले लंड के अंदर जाने से दर्द से रो भी रही है।मुझे भी थोड़ा थोड़ा दर्द हो रहा था इसलिए मैं भी धीरे धीरे ‘ऊह्ह आअह्ह आअह्हह’ की आवाज़ें निकाल रही थी।
पर पीटर को क्या है उसको तो सिर्फ पानी निकलना है।
खैर छोड़िये बातों को। जैसे ही पीटर का स्खलन होने वाला था, पीटर ने अपना पूरा वीर्य मेरी कमर पर गिरा दिया और अपने निढाल मोटे नरम नरम लंड को मेरी पीठ पर रगड़ने लगा।
थोड़ी देर बाद मैं उठी पीछे पलटी और नीचे झुकी तो देखा पीटर ने अपना जीन्स खोले बिना ही ऊपर से अपना लंड बाहर निकाल रखा था और वैसे ही मुझे चोद चुका था।
मैंने पीटर की जीन्स की ज़िप खोली और जीन्स को नीचे कर उसकी चड्डी को नीचे कर पीटर के लंड को किस किया और फिर होटों से चूसने लगी।
कुछ ही देर में पीटर का तानसेन फिर से खड़ा हो चुका था।
मैंने उसको एक हाथ से पकड़ा और चूसने लगी और पीटर चुपचाप अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर अपना लंड मुझसे चुसवाने लगा।
मुझे भी इतना मोटा लंड चूसने में बड़ा मज़ा आ रहा था। वैसे भी भला किस लड़की तो इतना अच्छा लंड पसंद न आये जिससे चुदवाने का शौक हो।
खैर छोड़िये इन बातों को और मैं अपनी चुदाई को आगे बढ़ाती हूँ।
मुझे नीचे बैठे बैठे अजीब सा लग रहा था क्योंकि उसका लंड बहुत ऊपर था इसलिए मैं जाकर कुर्सी पर बैठ गई और उसका लंड आराम से चूसने लगी। उधर पीटर भी मेरे टीशर्ट के ऊपर से मेरे मम्मों को दबाने लगा।
थोड़ी देर बाद उसके सब्र की सीमा पार हो गई और उसने मेरे टीशर्ट उतारनी शुरू कर। इसी चक्कर में मुझे पीटर का लंड चूसना छोड़  टीशर्ट निकालनी पड़ी, मैंने हाथ ऊपर किये और पीटर ने टीशर्ट ऊपर से निकाल दी।
अब मेरी ब्रा ही बची तो जिसने मेरे आबरू बचा रखी थी। पर मुझे पता था यह भी बस कुछ ही देर की मेहमान है। पर शायद पीटर को दया आ गई और उसने मेरी ब्रा नहीं निकाली पर मेरे मम्मों को भी नहीं छोड़ा।
पीटर ने मेरे मम्मों को ब्रा से निकल लिए और ब्रा के दोनों कपों को साइड में कर दिया और उनके दबाने लगा।
थोड़ी देर बाद पीटर ने मुझे बेड पर लेटा दिया और मेरी जीन्स भी निकाल दी जो आधी तो पीटर ने पहले ही निकाल दी थी।
फिर पीटर ने मुझे उठाया और खुद बिस्तर पर लेट गया और मुझे लंड के सवारी के लिए बुला लिया। मैंने अपने दोनों पैर पीटर के कमर के दोनों बगल रखा। पीटर ने अपने हाथ आगे किये और मैं भी अपने हाथों से पीटर के हाथ को पकड़ लिया और उसके लंड के टोपे को चूत से सटा दिया।
मेरे कमर ऊपर थी और मैं ऐसे बैठी थी मानो मैं कुर्सी पर बैठी हूँ, पर नीचे कुर्सी की जगह पीटर का लंड मेरे चूत में घुसा है।
पीटर के लंड पर मैं अपनी चूतड़ों को उठा उठा कर पीटर का लंड अंदर घुसाने का प्रयास कर रही थी और ज़ोर ज़ोर से उछल रही थी। बीच में पीटर ने अपने दोस्त अब्दुल को फ़ोन लगाया और ऊपर बुला लिया।
मैं पीटर की लंड के साथ मज़े करने मे मस्त थी, इसलिए मैंने इधर उधर ध्यान नहीं दिया।
कुछ ही देर में पीटर का दोस्त भी ऊपर आ गया और मुझे मेरी गांड के आस पास कुछ मोटे लंड जैसा एहसास होने लगा था क्योंकि मेरी गांड पीछे की तरफ थी इसलिए अब्दुल आराम से अपना लंड घुसा सकता था।
आगे की कहानी अगले भाग में।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे मेल करके [email protected] पर जरूर बताइयेगा।
प्लीज इस कहानी के नीचे अपने कमेंट जरूर लिखियेगा, धन्यवाद।
आपकी प्यारी चुदक्कड़ जूही परमार

 

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